SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ पंचसंग्रह : ३ का तो संक्रम के द्वारा उदय होता है। इसलिये आयु की तरह गतियां भवविपाकी नहीं हैं। विशेषार्थ-गाथा में जिज्ञासु के एक दूसरे प्रश्न का समाधान किया है । प्रश्न इस प्रकार है जिस भव की आयु बंध का किया हो तो उस भव में ही उस आयुकर्म का विपाकोदय होता है अन्य भव में नहीं होता है। जैसे कि मनुष्यायु का बंध होने पर उसका विपाकोदय देव आदि अन्य भवों में नहीं होता है और यह बात प्रत्यक्ष सिद्ध है। उसी प्रकार गतिनामकर्म का भी तत्तत् भव में उदय देखा जाता है। इसलिए गति को भी आयु की तरह भवविपाकी मानना चाहिये। फिर उसे जीवविपाकी क्यों कहा जाता है ? इस प्रश्न का समाधान करते हुए ग्रन्थकार आचार्य बतलाते हैं - 'आउव्व भवविवागा' अर्थात् आयुकर्म ही भवविपाकी है किन्तु आयु की तरह ‘गई न' गतियां भवविपाकी नहीं हैं। क्योंकि जिस भव की आयु का बंध किया हो, उसके सिवाय अन्य किसी भी भव में उस आयु का विपाकोदय द्वारा उदय नहीं होता है और न संक्रम द्वारास्तिबुकसंक्रम द्वारा भी उदय होता है। जिस गति की आयु बांधी हो उस गति में ही उसका उदय होता है। इसलिये अपने निश्चित भव के साथ अव्यभिचारी होने से आयु को भवविपाकी कहा जाता है। परन्तु 'गईण पुण संकमेणत्थि' अर्थात् गतियों का तो अपने भव के सिवाय अन्यत्र भी संक्रम-स्तिबुकसंक्रम द्वारा उदय होता है। जिससे अपने भव के साथ व्यभिचारी होने से वे भवविपाकी नहीं हैं। ___ उक्त समाधान का तात्पर्य यह है कि आयु का स्वभव में ही उदय होता है । इसलिये आयुकर्म भवविपाकी ही है किन्तु गतियों का तो स्वभव में विपाकोदय द्वारा और परभव में स्तिबुकसंक्रम द्वारा भी इस तरह स्व और पर दोनों भवों में उदय संभव होने से वे भवविपाकी नहीं मानी जाती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy