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पंचसंग्रह : ३ है ? क्योंकि सर्वघातिस्पर्धकों के दलिक स्वघात्यगुण को सर्वथा प्रकार से घात करने के स्वभाव वाले होते हैं। : उत्तर-यह कथन योग्य नहीं है। क्योंकि सर्वघातिस्पर्धकों के दलिकों को तथाप्रकार से शुद्ध अध्यवसाय के बल से कुछ अल्प शक्ति वाला करके विरल-विरलतया वेद्यमान देशघाति रसस्पर्धकों में स्तिबुकसंक्रम के द्वारा संक्रमित किये जाने से जितनी उनमें फल देने की शक्ति है, उसे प्रगट करने में समर्थ नहीं होते हैं, अर्थात् रसोदय हो किन्तु जितना फल दे सकें, उतना फल देने में समर्थ नहीं होते हैं, जिससे वे स्पर्धक क्षयोपशम का घात करने वाले नहीं होते हैं। इसलिए मोहनीय कर्म का प्रदेशोदय होने पर भी क्षयोपशम भाव का विरोधी नहीं है। तथा___'अणेग भेओत्ति' इस पदगत 'इति' शब्द अधिक अर्थ का सूचक होने से यह विशेष समझना चाहिए कि आदि की बारह कषाय और मिथ्यात्वमोहनीय रहित शेष मोहनीय प्रकृतियों का प्रदेशोदय अथवा विपाकोदय होने पर भी क्षयोपशम होता है, इसमें कुछ भी विरोध नहीं हैं । क्योंकि संज्वलन आदि मोहनीय की प्रकृतियां देशघाति हैं और उसमें भी यह विशेष है कि सर्वघाति प्रकृतियों के अतिरिक्त शेष मोहनीयकर्म की प्रकृतियां अध्र वोदया हैं। जिससे विपाकोदय के अभाव में क्षायोपशमिक भाव होने पर और प्रदेशोदय सम्भव होने पर भी वे प्रकृतियां अल्पमात्रा में भी देशघाति नहीं होती हैं किन्तु जब विपाकोदय हो तब क्षायोपशमिक भाव होते भी कुछ मलिनता करने वाली होने से देशघाति होती हैं, गुण के एकदेश का घात करने वाली होती हैं।
उक्त कथन का सारांश यह है कि देशघाति प्रकृतियों के उदय रहते भी क्षयोपशम हो सकता है और सर्वघाति प्रकृतियों के उदय में
१ अनुदीर्ण प्रकृति के दलिकों को समान स्थिति वाली उदय-प्राप्त प्रकृति में
संक्रमित करके अनुभव किये जाने को स्तिबुकसंक्रम कहते हैं।
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