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________________ १०२ पंचसंग्रह : ३ प्रश्न-कर्मों का क्षयोपशम उनका उदय हो तब होता है अथवा उदय न हो तब होता है ? यदि यह कहो कि उदय हो तब होता है तो उसमें विरोध आता है। वह इस प्रकार-क्षायोपशमिक भाव उदयावलिका में प्रविष्ट अंश का क्षय होने से और उदय-अप्राप्त अंश के विपाकोदय को रोकने रूप उपशम होने से उत्पन्न होता है, अन्यथा उत्पन्न नहीं होता है। इसलिए यदि उदय हो तो क्षयोपशम कैसे हो सकता है ? और यदि क्षयोपशम हो तो उदय कैसे हो सकता है ? अब यदि यह कहो कि अनुदय यानी कर्म का उदय न हो तब क्षयोपशम होता है तो यह कथन भी अयुक्त है। क्योंकि उदय का अभाव होने से ही ज्ञानादि गुणों के प्राप्त होने रूप इष्ट फल सिद्ध होता है । उदयप्राप्त कर्म ही आत्मा के गुणों का घात करते हैं, परन्तु जिनका उदय नहीं है वे किसी भी गुण के रोधक नहीं होते हैं, तो फिर क्षयोपशम होने से विशेष क्या हुआ ? मतिज्ञानावरणादि कर्मों का उदय नहीं होने से ही मतिज्ञानादि गुण प्राप्त होंगे तो फिर क्षायोपशमिक भाव की कल्पना किसलिए करना चाहिये ? क्षायोपशमिक भाव की कल्पना ही व्यर्थ है। आचार्य इस पूर्व पक्ष का समाधान करते हैं उत्तर-'उदये च्चिय अविरुद्धो खाओवसमो' अर्थात् जब उदय हो तब क्षायोपशमिक भाव होता है, इसमें किसी प्रकार का विरोध नहीं है। इसीलिये तो कहा है-उदय रहते अनेक भेद-प्रकार का क्षयोपशम होता है। यदि उदय रहते क्षायोपशमिक भाव प्रवर्तित हो तो वह तीन कर्मों में ही होता है और मोहनीयकर्म में प्रदेशोदय होने पर ही क्षायोपशमिक भाव होता है। विशेषता के साथ जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है ज्ञानावरण आदि कर्मों का जब तक क्षय न हो, तब तक वे ध्र वोदयी हैं, जिससे उनका उदय रहते ही क्षयोपशम घटित होता है किन्तु अनुदय में नहीं। इसका कारण यह है कि उदय के अभाव में वे ज्ञाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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