________________
१००
पंचसंग्रह : ३
और सादि-सांत यह तीन भंग होते हैं। जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार हैं
जिन प्रकृतियों की सत्ता न हो और पुनः सत्ता में प्राप्त हों, अर्थात् जो प्रकृति सत्ता का नाश होने के पश्चात पुनः उनकी सत्ता हो तो उनमें सादि-सान्तरूप भंग घटित होता है और उनसे शेष रही अन्य प्रकृतियों में अनादि-अनन्त और अनादि-सांत ये दो भंग होते हैं और ये दोनों भंग पूर्व में कहे गये अभव्य और भव्य की अपेक्षा जानना चाहिए। ___ अब जिन कतिपय उत्तरप्रकृतियों में सादि-सांतरूप तोसरा भंग भी सम्भव है, उन उत्तरप्रकृतियों को बतलाते हैं
उपशमसम्यक्त्व की जब प्राप्ति होती है तब सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व मोहनीय इन दो प्रकृतियों की सत्ता सम्भव है। पंचेन्द्रिय की प्राप्ति होने पर वैक्रियषटक की, सम्यक्त्व की प्राप्ति होने पर तीर्थकरनाम की, संयम की प्राप्ति होने पर आहारकद्विक की सत्ता सम्भव है। इसलिए इन प्रकृतियों में सादि-सांत यह भंग घटित होता तथा अनन्तानुबंधीकषाय, मनुष्यद्विक, उच्चगोत्र आदि उद्वलन योग्य प्रकृतियों की उद्वलना होने के पश्चात् पुनः उनका बंध सम्भव होने से वे सत्ता को प्राप्त कर लेती हैं। इसलिए उनमें सादि-सांत भंग घटित होता है। आयुकर्म की प्रकृतियों में तो उन-उनके अनुक्रम से सत्ता में प्राप्त होने से सादि-सांत भंग स्पष्ट ही है। इस प्रकार उपयुक्त प्रकृतियों में ही सादि-सांत भंग घटित होता है। लेकिन अप्रत्याख्यानावरण क्रोधादि, औदारिक आदि शरीर और नीच
१ जिस प्रकृति का बंध किया हो, पीछे परिणामविशेष से भागाहार के द्वारा
अपकृष्ट करके उसको अन्य प्रकृतिरूप परिणमा के नाश कर देने को (उदय में आने देने के पूर्व नाश कर देने को) उद्वलना कहते हैं । उद्वलनायोग्य प्रकृतियों नाम आगे बतलाये हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org