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________________ ख२ बंधव्य-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २६ अवश्य होते ही हैं। इसी का ज्ञापन कराने के लिये गाथा में चारित्रगुण का उल्लेख किया है। अर्थात् सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान के सद्भाव में हो चारित्र सम्यक्चारित्र कहलाता है। जिससे चारित्र के ग्रहण से उनका भी ग्रहण कर लिया गया समझना चाहिये। 'खइए केवलमाई' अर्थात् क्षायिक भाव के प्रवर्तमान होने पर केवलादि अर्थात् केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक सम्यक्त्व, यथाख्यात चारित्र और दानादि पांच लब्धि, ये नौ गुण उत्पन्न होते हैं। उनमें से ज्ञानावरण का सर्वथा क्षय होने से केवलज्ञान, दर्शनावरण का सर्वथा क्षय होने से केवलदर्शन, मोहनीयकर्म का क्षय होने से क्षायिक सम्यक्त्व और यथाख्यातचारित्र तथा अन्तरायकर्म का क्षय होने से सम्पूर्ण दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य ये पांच लब्धियाँ प्रगट होती हैं और नि:शेष रूप से कर्मक्षय होने पर परम निश्रयम् रूप मोक्ष प्राप्त होता है।' 'तव्ववएसो उ उदईए' अर्थात् औदयिक भाव के प्रवर्तित होने पर उस कर्म के उदयानुसार जीव का व्यपदेश होता है यानी कहलाता है। जैसे कि प्रबल ज्ञानावरण के उदय से अज्ञानी, प्रबल दर्शनावरण के उदय में अन्धा, बधिर, मूक इत्यादि किसी भी एक अंग से चेतना रहित १ सम्यक्त्वचारित्रे । ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च । -तत्त्वार्थसूत्र २।३,४ २ क्षायिक भावजन्य नौ भेदों की प्राप्ति सिद्धों में इस प्रकार से समझना चाहिए केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण का निःशेष रूपेण क्षय होने से केवलज्ञान और केवलदर्शन, मोहनीय और अनन्तानुबंधी कषाय के क्षय से जन्य आत्मिक गुणरूप क्षायिक सम्यग्दर्शन, चारित्रमोहनीय कर्म के क्षय से जन्य स्वरूपरमणता रूप चारित्र एवं अन्तरायकर्म के क्षय से उत्पन्न होने वाली आत्मिक गुणरूप दानादि लब्धियां सिद्धों में पाई जाती हैं। ३ कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः । -तत्त्वार्थ सूत्र १०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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