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________________ बंधव्य-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १६ नाणावरणचउक्कं दसणतिग नोकसाय विग्धपणं । संजलण देसघाई तइय विगप्पो इमो अन्नो ॥१६॥ शब्दार्थ-नाणावरणचउक्कंज्ञानावरणचतुष्क, दसतिग-दर्शनावरणत्रिक, नोकसाय-नोकषाय, विग्धपणं-अन्तरायपंचक, संजलण-संज्वलन कषायचतुष्क, देसघाई–देशघाति, तइय-तीसरा, विगप्पो-विकल्प, इमोयह, अन्नो-अन्य दूसरा।। गाथार्थ-ज्ञानावरणचतुष्क, दर्शनावरणत्रिक, नोकषायनवक, अन्तरायपंचक संज्वलनचतुष्क, ये देशघाति हैं। घातिप्रकृतियों में यह तीसरा विकल्प है। विशेषार्थ-ग्रन्थकार आचार्य ने गाथा में देशघाति प्रकृतियों के नाम बतलाकर इनको घाति प्रकृतियों का एक विशेष भेद मानने का निर्देश किया है। _ 'नाणावरणच उक्कं' अर्थात् ज्ञानावरण के पांच भेदों में से केवलज्ञानावरण को छोड़कर शेष रहे मतिज्ञानावरण, श्रु तज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनपर्यायज्ञानावरण रूप ज्ञानावरणचतुष्क, चक्षदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण रूप 'दंसणतिग' दर्शनत्रिक, तीन वेद और हास्यादिषट्क रूप नवनोकषाय, दानान्तराय लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्त राय और वीर्यान्तराय रूप अन्तरायपंचक तथा संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ रूप संज्वलनचतुष्क कुल मिलाकर पच्चीस प्रकृतियां देशघाति हैं और इनके देशघाति होने के कारण को पूर्व में सर्वघाति प्रकृतियों के विवेचन के प्रसंग में स्पष्ट किया जा चुका है। सर्वघाति और अघाति प्रकृतियों के विचार प्रसंग में 'तइय विगप्पो इमो अन्नो' --देशधाति रूप यह एक तीसरा विशेष विकल्प है। अर्थात् घाति और उसका प्रतिपक्षी अघाति यही दो मुख्य हैं और सामान्य से घातिवर्ग की सभी प्रकृतियां आत्मगुणों का घात करने वाली होने से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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