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________________ पंचसंग्रह : ३ केवलज्ञानावरण आदि बीस प्रकृतियां यथायोग्य रीति से अपने द्वारा जिन गुणों का घात हो सकता है उन सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन और चारित्र गुण को सर्वात्मना घात करती हैं । वह इस प्रकार से समझना चाहिये कि मिथ्यात्व और अनन्तानुबंधिकषायचतुष्क सम्यक्त्व गुण का सर्वथा घात करती हैं। क्योंकि इनका उदय रहने तक औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में से कोई भी सम्यक्त्व प्राप्त नहीं होता है । केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण अनुक्रम से केवलज्ञान और केवलदर्शन को पूर्णरूप से आवृत करते हैं । पांच निद्रायें दर्शनावरणकर्म के क्षयोपशम से प्राप्त दर्शनलब्धि को सर्वथा आच्छादित करती हैं । अप्रत्याख्यानावरणकषायचतुष्क का उदय रहते एकदेश चारित्र, व्रत, प्रत्याख्यान ग्रहण नहीं किये जा सकते हैं और प्रत्याख्यानावरणकषायचतुष्क सर्वविरति रूप चारित्र का सर्वथा घात करती हैं। इसीलिए ये मिथ्यात्व आदि सभी बीस प्रकृतियां सम्यक्त्व आदि गुणों का सर्वथा घात करने वाली होने से सर्वघाति कहलाती हैं तथा उक्त बीस प्रकृतियों के सिवाय शेष रही चार घाति कर्मों की मतिज्ञानावरण आदि पच्चीस प्रकृतियां अपने-अपने विषयभूत ज्ञानादि गुणों के एकदेश का घात करने वाली होने से देशघाति कहलाती हैं । ७८ उपर्युक्त समग्र कथन का सारांश यह है • यद्यपि केवलज्ञानावरणकर्म आत्मा के ज्ञानगुण को सम्पूर्ण रूप से घात करने - आच्छादित करने के लिए प्रवृत्त होता है तथापि उसके द्वारा उक्त गुण समूल घात ( नष्ट) नहीं किया जा सकता है । यदि पूर्णरूप से घात कर दे तो जीव अजीव हो जाये और उससे जड़-चेतन के बीच अन्तर ही न रहे। जैसे सूर्य और चन्द्र की किरणों का आवरण करने के लिये प्रवर्तमान विशाल गाढ़ घनपटल के द्वारा उनकी प्रभा पूर्णरूप से आच्छादित नहीं की जा सकती है । यदि ऐसा न माना जाये तो लोकप्रसिद्ध दिन-रात के विभाग का ही अभाव हो जायेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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