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पंचसंग्रह : ३
जीवविपाकिनी । इन सोलह वर्गों के अतिरिक्त अपेक्षा भेद से दूसरे भी जिन वर्गों में प्रकृतियों का वर्गीकरण किया है, उनके नाम और उनमें गृहीत प्रकृतियों के नाम कारणसहित यथास्थान आगे बताये जायेंगे। __ इन ध्र वबंधिनी आदि के लक्षण स्वयं ग्रन्थकार आगे कहने वाले हैं, लेकिन प्रासंगिक होने से यहाँ संक्षेप में उनके लक्षण बतलाते हैं।
बंधविच्छेद काल पर्यन्त प्रति समय प्रत्येक जीव को जिन प्रकृतियों का बंध होता है, उन्हें ध्र वबंधिनी और बंधविच्छेद काल तक भी सर्वकालावस्थायी जिनका बंध न हो, उन्हें अध्र वबंधिनी प्रकृति कहते हैं।
उदयविच्छेद काल पर्यन्त प्रत्येक समय जीव को जिन-जिन प्रकृतियों का विपाकोदय होता है वे ध्र वोदया और उदयविच्छेद काल तक भी जिनके उदय का नियम न हो वे अध्र वोदया प्रकृति कहलाती हैं। ___ अपने द्वारा घात किये जा सकें ऐसे ज्ञानादि गुणों को जो सर्वथा घात करती हैं वे प्रकृतियां सर्वघातिनी और उनकी प्रतिपक्षी प्रकृतियां देशघातिनी अथवा सर्वघाति प्रतिभागा सर्वघातिसदृश प्रकृति कहलाती हैं । यहाँ सर्वघाति की प्रतिपक्ष प्रकृतियों में देशघाति और अघाति इन दोनों का ग्रहण किया गया है। उनमें से अपने द्वारा घात किये जा सकें ऐसे ज्ञानादि गुणों के एकदेश का जो घात करें वे देशघातिनी और सर्वघातिनी प्रकृतियों के संसर्ग से जिन प्रकृतियों में सर्वघाति प्रकृतियों जैसा सादृश्य हो वे सर्वघातिप्रतिभागा कहलाती हैं । तात्पर्य यह है कि स्वयं स्वरूपतः अघाति होने से अपने में ज्ञानादि गुणों के आवृत करने की शक्ति न होने पर भी सर्वघाति प्रकृतियों के संसर्ग से अपना अति दारुण विपाक बतलाती हैं । वे सर्वघाति प्रकृतियों के साथ वेदन किये जाते हुए दारुण विपाक बतलाने वाली होने से उन प्रकृतियों के सादृश्य को प्राप्त करती हैं, जिससे वे सर्वघातिप्रतिभागा कहलाती हैं।
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