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________________ बंधar - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १४ वर्गीकरण की संज्ञायें धुवबंधिधुवोदय सव्वघाइ परियत्तमाण असुभाओ । पंच व सपविक्खा पगई य विवागओ चउहा ॥ १४ ॥ ६७ शब्दार्थ - धुवबंधि - ध्रुवबंधी, धुत्रोदय-ध्रुवोदय, सम्बधाइ - सर्वघाति, परियतमाण- परावर्तमान, असुभाओ - अशुभ, पंच-पांच, य-और, सपडिवक्खा -- सप्रतिपक्षा, पगई – प्रकृति, य-और, विवागओ - विपाक की अपेक्षा, चउहा- चार प्रकार | गाथार्थ - ज्ञानावरणादि की उक्त उत्तरप्रकृतियों के ध्रुवबंधी, ध्रुवोदय, सर्वघाति परावर्तमान और अशुभ ये पांचों भेद प्रतिपक्ष सहित दस होते हैं और विपाक की अपेक्षा चार भेद हैं । विशेषार्थ - कर्मसिद्धान्त में जिन आपेक्षिक संज्ञाओं द्वारा ज्ञानावरणादि आठों कर्मों की उत्तरप्रकृतियों का वर्गीकरण किया गया है, उनमें से कतिपय नाम गाथा में बतलाये हैं और शेष के लिए संकेत किया है ध्रुवबंधिनी, ध्रुवोदया, सर्वघातिनी, परावर्तमाना और अशुभ और इन पांचों को अध्र वबंधिनी आदि प्रतिपक्ष सहित करने पर दस भेद होते हैं तथा 'पंच य' इस पद में आगत 'य-च' शब्द द्वारा सप्रतिपक्ष सत्ता प्रकृतियां समझ लेना चाहिये तथा विपाक की अपेक्षा ये सभी प्रकृतियां चार प्रकार की हैं- पुद्गलविपाकिनी, भवविपाकिनी, क्षेत्रविपाकिनी और जीवविपाकिनी । इस प्रकार गाथा में कुल मिलाकर वर्गीकरण की सोलह संज्ञाओं के नाम बतलाये हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं १. ध्रुवबंधिनी, २. अध्र वबंधिनी, ३. ध्रुवोदया, ४. अध्र वोदया, ५. ध्रुवसत्ताका, ६. अध्रुवसत्ताका, ७. सर्वघातिनी, ८. देशघातिनी, ६. परावर्तमान, १०. अपरावर्तमान, ११. अशुभ, १२. शुभ, १३. पुद्गलविपाकिनी, १४. भवविपाकिनी, १५. क्षेत्रविपाकिनी और १६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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