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________________ पंचसंग्रह का अल्पबहुत्व बतलाया है। पहले बादर तेजस्काय और वायुकाय के जीवों का प्रमाण बतलाते हैं। __आवलिका के वर्ग को कुछ न्यून आवलिका के समयों द्वारा गुणा करने पर जो संख्या प्राप्त होती है, उतने बादर पर्याप्त तेजस्काय के जीव हैं। असत्कल्पना से जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार जानना चाहिये असंख्यात समय की एक आवलिका होती है, लेकिन असत्कल्पना से उसे दस समय की मानकर उसका वर्ग करें, जिससे दस को दस से गुणा करने पर सौ हुए। उनको कुछ कम आवलिका के समयों द्वारा गुणा करें। यहाँ कुछ कम का प्रमाण दो समय लें तो आवलिका के कुल दस समयों में से दो को कम कर आठ समयों द्वारा गुणा करने पर आठ सौ हुए। यह बादर तेजस्काय के जीव का प्रमाण जानना चाहिये। लेकिन यथार्थरूप से तो आवलिका के समय चौथे असंख्यात जितने होने से चौथे असंख्यात की संख्या को उसी संख्या से गुणा करने पर जो राशि प्राप्त हो, उसको कुछ कम चौथे असंख्यात की संख्या से गुणा करने पर जो संख्या प्राप्त हो, उतने बादर तेजस्काय के जीव हैं। पर्याप्त बादर वायुकाय के जीव लोक के संख्यातवें भाग प्रमाण हैं'वाऊ य लोगसंखं' । अर्थात् घनीकृत लोक के असंख्याता प्रतर के संख्यातवें भाग में रहे हुए आकाशप्रदेश प्रमाण पर्याप्त बादर वायुकाय के जीव हैं। इस प्रकार से पर्याप्त बादर स्थावर जीवों की संख्या का प्रमाण बतलाने के बाद अब उनके अल्पबहुत्व का विवेचन करते हैं। बादर पर्याप्त तेजस्काय के जीव सबसे अल्प हैं, उनसे पर्याप्त प्रत्येक बादर वनस्पतिकाय के जीव असंख्यातगुणे हैं, उनसे पर्याप्त बादर पृथ्वीकाय के जीव असंख्यातगुणे हैं, उनसे पर्याप्त बादर जलकाय के जीव असंख्यातगुणे हैं और उनसे पर्याप्त बादर वायुकाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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