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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २-३
चाहिये । क्योंकि उनके मनुष्यगति आदि औदयिक भाव से, ज्ञान-दर्शन आदि क्षायिक भाव से और जीवत्व, भव्यत्व पारिणामिक भाव से है।
छठा भंग चारों गति के संसारी जीवों की अपेक्षा जानना चाहिये। उनके नारकत्वादि पर्याय औदयिक भाव से, इन्द्रिय मतिज्ञानादि क्षायोपशमिक भाव से और जीवत्व, भव्यत्व या अभव्यत्व पारिणामिक भाव से होता है। ____ यह भंग गति के भेद से चार प्रकार का है--नरकगति में औदयिक भाव से नारकत्व, क्षायोपशमिक भाव से इन्द्रियादि और पारिणामिक भाव से जीवत्व, भव्यत्व अथवा जीवत्व, अभव्यत्व होता है। तिर्यंचगति में औदयिक भाव से तिर्यग्योनित्व, क्षायोपशमिक भाव से इन्द्रियादि और पारिणामिक भाव से जीवत्व आदि घटित होता है । इसी तरह मनुष्य और देवगति की अपेक्षा भी विचार कर लेना चाहिये।
पूर्वोक्त त्रिकसंयोगी भंग-औदयिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक भाव में क्षायिक भाव को मिलाने पर चतुःसंयोगी भंग होता है। जो इस प्रकार समझना चाहिये-औदयिक क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक । यह चतुःसंयोगी पांच भंगों में से चौथा भंग है। यह भग भी पूर्वोक्त त्रिकसंयोगी भंग की तरह गति के भेद से चार प्रकार का है। उसमें औदयिक भाव से मनुष्यत्वादि, क्षायिक भाव से सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक भाव से मतिज्ञानादि और पारिणामिक भाव से जीवत्व और भव्यत्व होता है । अथवा पूर्वोक्त त्रिकसंयोगी भंग के साथ औपशमिक भाव को जोड़ने पर भी चतुःसंयोगी भंग होता है और वह इस प्रकार है-क्षायोपशमिक-औपशमिक-औदयिक-पारिणामिक । यह चतुःसंयोगी भंगों में का तीसरा भंग है। जो पूर्वोक्त भंग की तरह गति के भेद से चार प्रकार का है। लेकिन इतना विशेष है कि क्षायिक सम्यक्त्व के स्थान पर उपशम सम्यक्त्व जानना चाहिये।
पंचसंयोगी भंग क्षायिक सम्यक्त्व में उपशम श्रेणि के आरोहक
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