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________________ १८ पंचसंग्रह औपशमिक पारिणामिक, ४. औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक, ५. औदयिक-क्षायिक-पारिणामिक, ६. औदयिक क्षायोपशमिक-पारिणामिक, ७. औपशमिक-क्षाथिक-क्षायोपशमिक, ८. औपशमिक-क्षायिक-पारिणामिक, ६. औपशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक, १०. क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक । चार के संयोग से निष्पन्न पांच भंग-१. औदयिक-औपशमिक. क्षायिक-क्षायोपशमिक, २. औदयिक औपशमिक क्षायिक-पारिणामिक, ३. औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक, ४. औदयिकक्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक, ५. औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक । पांचों भावों के संयोग से निष्पन्न एक भंग-औपशमिक-औदयिकक्षायिक-मायोपशमिक-पारिणामिक । इस प्रकार औदयिक आदि पांच भावों के छब्बीस भंग होते हैं। इन भंगों में से द्विकसंयोगी एक, त्रिकसंयोगी दो, चतुःसंयोगी दो और पंचसंयोगी एक, इस तरह छह भंग ही घटित होते हैं, शेष भंग घटित नहीं होते हैं। किन्तु भंगरचना की अपेक्षा से शेष भंग बतलाये हैं और वे भी इसलिये बताये हैं कि घटित होने वाले भंगों के ज्ञान के लिये यह रचना उपयोगी है। अब उक्त भंगों में से कौन-सा भंग किसके घटित होता है, यह बतलाते हैं। घटित भंगों के अधिकारी द्विकसंयोगी भंगों में से क्षायिक-पारिणामिक यह नौवां भंग सिद्धों में घटित होता है। क्योंकि सिद्धों में केवलज्ञान, दर्शन, क्षायिक सम्यक्त्व, चारित्र, दानादि लब्धियां क्षायिक भाव से हैं और जीवत्व पारिणामिक भाव से है। त्रिकसंयोगी भंगों में से औदयिक-क्षायिक-पारिणामिक रूप पांचवां तथा औदयिक-झायोपशमिक-परिणामिक रूप छठा-यह दो भंग संभव हैं। उनमें से पांचवां भंग केवली की अपेक्षा से जानना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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