________________
बंधक - प्ररूपणा अधिकार : गाथा २-३
औपशमिक आदि भावों का स्वरूप और उनके द्विकादि भंग
प्रश्न - औपशमिक आदि कितने भाव हैं ? उनका क्या स्वरूप है और द्विक, त्रिकादि योग करने की रीति क्या है ?
उत्तर - औपशमिकादि छह भाव हैं - ( १ ) औदयिक, ( २ ) औपशमिक, (३) क्षायिक, (४) क्षायोपशमिक, (५) पारिणामिक और (६) सान्निपातिक ।' जिनके लक्षण और भेद क्रमशः इस प्रकार हैं
(१) औदयिक भाव के दो भेद हैं- १. उदय और २. उदयनिष्पन्न । अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार फल देने के सम्मुख हुए ज्ञानावरणादि आठों कर्मों का अपने-अपने स्वरूप के अनुसार फलानुभव उदय है और उदय है कारण जिसका उसे औदयिक कहते हैं ।
११
१ (क) शुद्ध भाव औपशमिकादि पाच ही होते हैं ।
शुद्धभावाः पञ्चैवैते, तेषामेव सन्निपातान्मिश्रः षष्ठो भेदो भवति । - पंचसंग्रह — स्वोपज्ञवृत्ति, पृ. ४३ (ख) औपशमिकक्षायिक भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च । -तत्त्वार्थ सूत्र २/१ (ग) सान्निपातिक नाम का स्वतन्त्र भाव नहीं है । किन्तु संयोग भंग की अपेक्षा उसका ग्रहण किया जाता है ।
- जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, ४/३१३
२ उदय शब्द से 'इक' प्रत्यय लगाने से औदयिक शब्द बनता है । ३ उदइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा- - उदइए उदय निप्फन्ने य ।
-- अनुयोगद्वारसूत्र ४ (क) तत्रोदयोऽष्टानां कर्मप्रकृतीनामुदयः शान्तावस्था परित्यागेनोदीरणावलिकामतिक्रम्य उदयावलिकायामात्मीयरूपेण विपाक इत्यर्थः । —— स्थानांगवृत्ति, स्था. ६
(ख) उदइए अट्टण्हं कम्मपगडीणमुदर से तं उदइए ।
- Jain Education International
For Private & Personal Use Only
— अनुयोगद्वारसूत्र
www.jainelibrary.org.