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पंचसंग्रह
___ मुक्त जीव के ज्ञान-दर्शनादि रूप अपने स्वरूप में अनन्तकाल तक रहने के सिद्धान्त द्वारा उन दार्शनिकों का निरास हो जाता है, जिनके मत से आत्मा का मोक्ष हो जाने के बाद आत्मा जैसी वस्तु रहती नहीं है और जिनकी मोक्षविषयक मान्यता यह है कि___'जैसे बुझने पर दीपक, पृथ्वी में नीचे नहीं जाता, आकाश में ऊँचा नहीं जाता और किसी दिशा या विदिशा में भी नहीं जाता है, परन्तु वहीं रहते हुए स्नेह-तेल क्षय होने से बुझ जाता है। उसी प्रकार स्नेह-रागद्वेष का क्षय होने से निवृत्ति—मोक्ष को प्राप्त आत्मा भी पृश्वी में नीचे नहीं जाती, आकाश में ऊपर नहीं जाती और न किसी दिशा या विदिशा में ही जाती है, किन्तु वहीं रहते हुए दीपक की तरह बुझ जाती है अर्थात् उसका नाश हो जाता है।"
तथा___ 'अरिहंत के मरणोन्मुख चित्त की प्रतिसंधि-अनुसंधान नहीं होता है, किन्तु दोपक की तरह निर्वाण-नाश होता है, उसी प्रकार चित्तआत्मा का मोक्ष होता है ।।२।।
क्योंकि जो वस्तु सत् है, उसका कभी नाश नहीं होता है । पर्यायअवस्था बदलती है, परन्तु द्रव्य तो सदैव विद्यमान रहती है।
६. उपशमादि कितने भावों से युक्त जीव होते हैं ?-- इस प्रश्न का उत्तर यह है कि कितने ही जीव दो भाव, कितने ही तीन भाव, कितने ही चार भाव और कितने ही पाच भाव युक्त होते हैं.---'दुगतिगचउपंचमीसेहि' । इसका स्पष्टीकरण आगे किया जा रहा है । १ दीपो यथा निर्वृत्तिमभ्युपेतो नैवावनिं गच्छति नान्तरिक्षम् । दिशं न काञ्चिद्विदिशं न कांचित्स्नेहक्षयात्केवलमेति शान्तिम् ।। जीवस्तथा निर्वृतिमभ्युपेतो नैवावनि गच्छति नान्तरिक्षम् । दिशं न काञ्चिद्विदिशं न काञ्चित्स्नेहक्षयात्केवलमेति शान्तिम् ।।
— सौदरानन्द १६/२८,२६ २ यह बौद्धदर्शन की मान्यता है ।
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