SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २-३ ऐसे एकाकार रूप में रहे हुए हैं कि उनमें यह पानी है और यह दूध है, इस प्रकार का विभाग नहीं हो पाता है।' ५. जीव कितने कालपर्यन्त जीवरूप में रहेगा, उसका नाश कब होगा ?-यह पांचवाँ प्रश्न है। इसका उत्तर है 'सव्वकालंतु' । अर्थात् जीव सर्वदा जीव रूप में रहेगा, किसी भी समय उसका नाश नहीं होता। शंकातीसरे प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि जीव को किसी ने नहीं बनाया है, किन्तु आकाश की तरह अकृत्रिम है और अकृत्रिम वस्तु का कभी भी नाश नहीं होता है। जब इतनी स्पष्ट बात है तो पुनः यहाँ 'उसका नाश नहीं होता है'-कहकर तीसरे प्रश्न के उत्तर की पुनरावृत्ति करने का क्या प्रयोजन है ? समाधान-दोनों का पृथक्-पृथक् निर्देश विशेष उद्देश्य को लेकर किया गया है। तीसरे प्रश्न के उत्तर द्वारा जीव अनादिकाल से है, यह बतलाया है। जबकि यहाँ यह स्पष्ट किया है कि अनन्तकालपर्यन्त भी जीव जीवरूप में रहने वाला है। तात्पर्य यह है कि जीव को किसी ने बनाया नहीं है, इसलिये वह अनादिकाल से है और अनन्तकाल तक जीवरूप में ही रहने वाला है। यानी जीव अनादिअनन्त है। ___ अब कदाचित् यह कहो कि मुक्त जीव अनन्तकाल तक जीवरूप यानी स्वरूप में कैसे रहते हैं ? तो इसके लिये समझना चाहिये कि मुक्त अवस्था को प्राप्त जीव सदैव के लिये ज्ञान-दर्शन आदि अनन्त आत्म-गुणात्मक अपने स्वरूप में ही रहेंगे। क्योंकि ज्ञान-दर्शन आदि गुण जीव के स्वरूप हैं। वे गुण कभी भी उसके सिवाय अन्य किसी द्रव्य में नहीं रहते हैं और न पाये जा सकते हैं। १ अन्नोन्नमणुगयाई इमं च तं च त्ति विभयणमजुत्तं । जह खीरपाणीयाई ति। -पंचसंग्रह-मलयगिरि टीका, पृ. ४४ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy