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________________ बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २-३ सिवाय शेष करण-अपर्याप्तकों में सास्वादन गुणस्थान भी पाया जाता है। संज्ञी करण-अपर्याप्तकों में तीन गुणस्थान पाये जा सकते हैं । क्योंकि करण-अपर्याप्त दशा में उनको अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान भी सम्भव है। इस प्रकार सामान्य से जीवों के कर्मबन्धत्व का विचार करने के बाद अब वर्णन करने की प्रतिज्ञा के अनुसार किम् आदि एवं सत् आदि पदों द्वारा जीव की प्ररूपणा करते हैं। इनमें से अल्पवक्तव्यता पहले के कारण किमादि पदो द्वारा जीव का विचार करते हैं। किमादि पदों द्वारा निरूपण कि जीवा ? उसमाइएहि भावहिं संजुयं दव्वं । कस्स सरूवस्स पहू केणंति ? न केणइ कया उ ॥२॥ कत्थ ? सरीरे लोए व हुंति केवचिर ? सव्वकालं तु । कइ भावजुया जीवा ? दुगतिगचउपचमीसेहिं ॥३॥ शब्दार्थ-कि-क्या, जीवा-जीब, उवसमाइहि - औपशमिकादि, भावेहि-भावों से, संजुयं --संयुक्त, दध्वं --द्रव्य, कस्स-किसका, सरूवस्सस्वरूप का, पहू --प्रभु-स्वामी, केणंति-किसने, न-नहीं, केणइ--किसी के द्वारा भी, कया --कृत-बनाया, उ ---निश्चय ही । ___ कत्थ --कहाँ, सरीरे ----शरीर में, लोए--लोक में, व-अथवा, हुंति-- होते हैं, केचिर-कितने काल तक, सब्वकालं-सर्वकाल, तु-ही, कइकितने, भावजुया-भावयुक्त, जीवा-जीव, दुगतिगचउपंचमीसेहि-दो, तीन, चार, पांच से युक्त। गाथाथ-जीव क्या है ? औपशमिकादि भावों से संयुक्त द्रव्य है। किसका प्रभु-स्वामी है? अपने स्वरूप का स्वामी है। किसने बनाया है ? किसी ने नहीं बनाया है। ... जीव कहाँ रहता है ? शरीर अथवा लोक में रहता है ? कितने काल तक रहने वाला है ? सर्वकाल-सदैव रहने वाला है। कितने भावों से युक्त जीव होते हैं ? दो, तीन, चार और पांच भावों से युक्त जीव होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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