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________________ ( २२ > है । जाये तो इस स्थिति के लिए नैयायिकों का ईश्वरवाद और कर्मवाद उत्तरदायी इसने वर्गभेद, जात-पाँत, सधन निर्धन की दीवारें खड़ी की । ईश्वर, कर्म के नाम पर यह सब हमसे कराया गया। इसके साथ ही साहित्य में इन बातों का प्रतिपादन करके स्थायी रूप दे दिया गया । अजैन लेखकों ने तो नैयायिकों के कर्मवाद का समर्थन किया ही किन्तु जैन लेखकों ने भी जो कथासाहित्य लिखा है, उसमें भी प्राय नैयायिक कर्मवाद का समर्थन किया गया है । वे जैन कर्मवाद के आध्यात्मिक रहस्य को एक प्रकार से भूलते गये । जैन कर्मवाद की सही दृष्टि क्या है, प्राणिमात्र को क्या समझाना चाहता है, इसकी ओर कुछ भी निर्देश न करके नैयायिक कर्मवाद को व्यापक रूप दे दिया । अजैन लेखकों द्वारा और जैन लेखकों द्वारा लिखे गये कथासाहित्य को पढ़ जाइये, दोनों का एक ही दृष्टिकोण है, एक ही दृष्टि से विचार करते हैं एवं प्रस्तुतीकरण का रूप भी समान ही है । पुण्य-पाप के वर्णन में दोनों की एकरूपता है । अजैन लेखकों की तरह जैन लेखक भी बाह्य आधारों को लेकर चले हैं, वे जैनमान्यता के अनुसार कर्मों के वर्गीकरण और उनके अवान्तर भेदों को सर्वथा भूलते गये । यही कारण है कि जैन कर्मसिद्धान्त का हार्द समझने के लिये स्वयं जैनों में कोई उत्सुकता, आकांक्षा या लगाव देखने में नहीं आया है । मात्र ऊपरी - ऊपरी कुछ ज्ञान प्राप्त करने अथवा परीक्षार्थियों द्वारा अन्यमनस्क भाव से अल्पाधिक मात्रा में अध्ययन करने की प्रणाली है । यद्यपि जैन कर्मसिद्धान्त के प्रति भले ही स्वयं जैनों का उक्त दृष्टिकोण रहे, तब भी निराश होने की बात नहीं है । क्योंकि वर्तमान में जिस प्रकार से साहित्यिक अनुशीलन, परिशीलन एवं तुलनात्मक अध्ययन की प्रणाली बढ़ रही और सैद्धान्तिक मान्यताओं को समझने की जिज्ञासा प्रवर्धमान है, उससे विश्वास होता है कि पाठकगण जैन कर्मसिद्धान्त की गहनता का सही मूल्यांकन करेंगे । कर्म विषयक धारणाओं की अप्राकृतिक और अवास्तविक उलझनों से मुक्त होंगे, कर्मवाद के आध्यात्मिक रहस्य को हृदयंगम करेंगे । विषयपरिचय सामान्य से तो अधिकार में नामानुसार कर्म के बंधक संसारी जीवों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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