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________________ पंचसंग्रह : २ ईशानकल्प के देवों से उसकी देवियां संख्यातगुणी हैं। क्योंकि वे बत्त सगुणी और बत्तीस अधिक होती हैं । सौधर्मकल्प और ज्योतिष्क आदि देवों के प्रत्येक भेद में देवों से देवियां बत्तीसगुणी तथा बत्तीस अधिक हैं । स्त्रियों की संख्या का प्रमाण बतलाने वाला जीवाभिगमसूत्र का पाठ इस प्रकार है १६ ४ 'तिरिक्खजोणियपुरिसेहितो तिरिक्खजोणियइत्थीओ तिगुणाओ तिरूवाहियाओ मणुस्सरसहितो मणुस्सीओ सत्तावीसगुणाओ सत्तावीस ख्वाहियाओ य । देवपुरिसेहितो देवीओ बत्तीसगुणाओ बत्तीसख्वुत्तराओ य इति ।' अर्थात् तिर्यंच पुरुषों से तिर्यंच स्त्रियां तिगुनी और तीन अधिक, मनुष्य पुरुषों से मनुष्य स्त्रियां सत्ताईस गुणी और सत्ताईस अधिक और देवपुरुषों से देव स्त्रियां बत्तीसगुणी और बत्तीस अधिक हैं । ईशानकल्प की देवियों से सौधर्मकल्प के देव, विमान अधिक होने से संख्यातगुणे हैं । जो इस प्रकार जानना चाहिए ईशान देवलोक में अट्ठाईस लाख और सौधर्म देवलोक में बत्तीस लाख विमान हैं तथा सौधर्मकल्प दक्षिण दिशा में और ईशान कल्प उत्तर दिशा में है । दक्षिण दिशा में कृष्णपाक्षिक जीवों के अधिक उत्पन्न होने के कारण और जीवस्वभाव से कृष्णपाक्षिक जीवों की संख्या अधिक होने से ईशानकल्प की देवियों से सौधर्मकल्प के देव संख्यातगुणे हैं । प्रश्न - सौधर्मकल्प के देवों के संख्यातगुणे होने में जो युक्ति दी है, उसी युक्ति के अनुसार माहेन्द्र देवलोक की अपेक्षा सनत्कुमारकल्प के देवों को भी संख्यातगुणा- कहना चाहिए था। क्योंकि दोनों स्थान पर युक्ति समान है तो फिर माहेन्द्रकल्प के देवों से सनत्कुमारकल्प के देवों को असंख्यातगुणे और सौधर्मकल्प के संख्यातगुणे बताने का क्या कारण है ? उत्तर - प्रज्ञापनासूत्र के महादंडक के अनुसार यहाँ अल्पबहुत्व www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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