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पंचसंग्रह पैंतालीस रात दिन, महाशुक्र देवलोक में अस्सी रात्रि दिन, सहस्रार देवलोक में सौ रात्रि दिन, आनत देवलोक में संख्यात मास, प्राणत देवलोक में संख्यात मास किन्तु आनत देवलोक की अपेक्षा अधिक जानना । आरण देवलोक में संख्यात वर्ष, अच्युत देवलोक में संख्यात वर्ष किन्तु आरणकल्प के देवों की अपेक्षा अधिक जानना । अधस्तन तीन वेयक देवों में संख्यात सौ वर्ष, मध्यम ग्रेवेयकत्रिक में संख्यात हजार वर्ष, उपरितन ग्रेवेयकत्रिक में संख्यात लाख वर्ष, विजय, विजयंत, जयन्त और अपराजित अनुत्तर देवों में असंख्यात काल और सर्वार्थसिद्ध महाविमानवासी देवों में पल्योपम का संख्यातवां भागरूप उत्पाद सम्बन्धी उत्कृष्ट विरहकाल जानना चाहिए और प्रत्येक का जघन्य विरहकाल एक समय का है।
सामान्यत: नरकगति में निरन्तर उत्पन्न होते हुए नारकी जीवों का उत्पाद सम्बन्धी विरहकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त है। लेकिन पृथक्-पृथक् रत्नप्रभा आदि के नारकों की अपेक्षा से विशेष विचार करें तो विरहकाल इस प्रकार जानना चाहिए___ रत्नप्रभा के नारकों का उत्पत्ति की अपेक्षा उत्कृष्ट विरहकाल चौबीस मूहर्त, शर्कराप्रभा के नारकों का सात दिन रात, बालुकाप्रभा के नारकों का पन्द्रह दिन, पंकप्रभा के नारकों का एक मास, धूमप्रभा के नारकों का दो मास, तमःप्रभा के नारकों का चार मास और तमस्तमप्रभा के नारकों का छह मास उत्कृष्ट विरहकाल है। प्रत्येक नारक का जघन्य विरहकाल एक समय जानना चाहिए। ___ सम्पूर्ण मनुष्य क्षेत्र में निरन्तर उत्पन्न होते हुए संमूच्छिम मनुष्यों का उत्पाद की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त विरहकाल है। समूच्छिम मनुष्य रूप से कोई भी जीव आकर उत्पन्न न हो तो उक्त काल पर्यन्त उत्पन्न नहीं होता है। तत्पश्चात् अवश्य उत्पन्न होता है।
निरन्तर उत्पन्न होते हुए विकलेन्द्रियों-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और
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