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बंधक - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४६
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जिससे पांच हस्वाक्षर उच्चारण करते जितना समय होता है, उतना उनका काल है । इसीलिये दोनों का अजघन्योत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त बताया है । इस प्रकार क्षीणमोह और अयोगिकेवली गुणस्थानों का काल जानना चाहिये ।
अब तीसरे विभाग में समाविष्ट सयोगिकेवली गुणस्थान का काल बतलाते हैं कि 'देसस्सव जोगिणो कालो' अर्थात् सयोगिकेवली का काल देशविरत गुणस्थान जितना है। यानि पूर्व में देशविरत गुणस्थान का जो जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि प्रमाण काल बतलाया है, उसी प्रकार से इस सयोगिकेवली गुणस्थान का काल भी जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि काल जानना चाहिये । अन्तर्मुहूर्त काल अन्तकृत केवली की अपेक्षा है और देशोन पूर्वकोटि काल इस प्रकार जानना चाहिये कि पूर्वकोटि की आयु वाला कोई जीव सात मास या नौ मास गर्भ में रहकर जन्म लेने के अनन्तर आठ वर्ष बाद चारित्र प्राप्त कर शीघ्र केवलज्ञान उत्पन्न करे तो ऐसे पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाले जीव की अपेक्षा तेरहवें गुणस्थान का देशोन पूर्वकोटि काल संभव है ।
पूर्वोक्त प्रकार से एक जीव की उपेक्षा प्रत्येक गुणस्थान के काल का प्रमाण जानना चाहिये । अब कार्यस्थिति का प्रमाण बतलाते हैं । एकेन्द्रियादि की काय स्थिति
एगिंदियाणणता दोणि सहस्सा तसाण कायठिई । अयराण इगपणिदिसु नरतिरियाणं सगट्ठ भवा ॥ ४६ ॥ शब्दार्थ - एगिदियाणता - एकेन्द्रियों की अनन्त, दोण्णि— दो, सहस्सा
१ जिस समय पूर्व जन्म की आयु पूर्ण होती है, उसके बाद के समय से ही आगामी जन्म की आयु प्रारम्भ हो जाती है । विग्रहगति या गर्भ में जो काल बीतता है, वह आगे के जन्म का ही बीतता है । इसलिए यहाँ जो सात मास या नौ मास गर्भ के और प्रसव के बाद के जो आठ वर्ष कहे हैं, वे पूर्वकोटि के अन्तर्गत ही समझना चाहिए ।
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