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________________ १८ . पंचसंग्रह : २ . क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन लोगस्स पएसेसु अणंतरपरंपराविभत्तीहि । खेत्तंमि बायरो सो सुहुमो उ अणंतरमयस्स ॥३६॥ शब्दार्थ-लोगस्स-लोकाकाश के, पएसेसु-प्रदेशों में, अणंतरपरपराविभत्तीहिं - अनन्तर या परम्परा विधि-प्रकार से, खेत्तंमि-क्षेत्र में, बायरो-बादर, सो-वह, सुहमो-सूक्ष्म, उ-और, अणंतरमयस्स-अनन्तर प्रकार से मरते हुए। गाथार्थ-अनन्तर या परम्परा प्रकार से लोकाकाश के प्रदेशों में मरण को प्राप्त होते हुए जीव को जितना काल होता है, उसे बादर क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन कहते हैं और अनन्तर प्रकार से मरते जीव को जितना काल होता है, वह सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन कहलाता है। विशेषार्थ-गाथा में बादर और सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप बताया है। उनमें से बादर क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप इस प्रकार है चौदह राजू प्रमाण ऊंचे लोकाकाश के प्रदेशों में अनन्तर प्रकार से यानि क्रमपूर्वक-एक के अनन्तर एक आकाश प्रदेशों में मरण को प्राप्त होते हुए अथवा परम्परा प्रकार से अक्रमपूर्वक-क्रम के सिवाय आकाश प्रदेश को स्पर्श करके मरण को प्राप्त होते हुए एक जीव को जितना काल होता है, उतने काल को बादर क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जितने काल में एक जीव लोकाकाश के समस्त आकाश प्रदेशों को क्रम से या अक्रम से-बिनाक्रम के मरण द्वारा स्पर्श करता है, उतने काल को बादर क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन कहते है। सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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