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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३८
सात रूपों में परिणत करना द्रव्य पुद्गलपरावर्तन माना जाता है और सक्ष्म में किसी भी एक रूप में परिणत करना होता है। सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन में विवक्षित एक शरीर के सिवाय यदि अन्य शरीर के रूप में परिणत कर करके जिन पुद्गलों को छोड़ा जाता है, उनको नहीं गिनते हैं। परन्तु सुदीर्घकाल में भी विवक्षित एक शरीर रूप में जब जगद्वर्ती परमाणुओं को परिणत करे, तब उसका परिणाम गिना जाता है । काल तो प्रारम्भ से अंत तक का गिना ही जाता है।
इस प्रकार से बादर और सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप जानना चाहिये। अब बादर और सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप कहते हैं।
१ बादर और सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन के उक्त कथन का सारांश यह है
कि औदारिक आदि आठ ग्रहणयोग्य वर्गणाओं में से आहारक शरीरवर्गणा को छोड़कर शेष वर्गणाओं के समस्त परमाणुओं को जितने समय में एक जीव औदारिकादि कार्मण शरीर पर्यन्त परिणत कर (भोगकर) छोड़ देता है, उसे बादर द्रव्य पुद्गलपरावर्तन कहते हैं और जितने समय में समस्त परमाणुओं को औदारिक आदि सात वर्गणाओं में से किसी एक वर्गणा रूप परिणमाकर उन्हें ग्रहण कर छोड़ देता है, उतने समय को सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन कहते हैं।
यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि यदि औदारिक शरीर रूप से परमाणुओं को परिणमाना प्रारम्भ किया है और उसके मध्य-मध्य में कुछ परमाणुओं को वैक्रिय आदि शरीर रूप ग्रहण करके छोड़ दे तो उनको गणना में नहीं लिया जाता है । अर्थात् जिस शरीर रूप परिवर्तन प्रारम्भ हुआ था, उसी शरीर रूप जो पुद्गल परमाणु ग्रहण करके छोड़े जाते हैं, उन्हीं को सूक्ष्म में ग्रहण किया जाता है तथा जिन पुद्गलों को एक बार ग्रहण करके छोड़ दिया हो, उनको पुन: ग्रहण किया जाये या मिश्र ग्रहण किया जाये तो उनकी स्पर्शना ग्रहण नहीं की जाती है। परन्तु जिसको ग्रहण नहीं किया था, उसको ग्रहण करके परिणत करके छोड़ दे, उसकी स्पर्शना गिनी जाती है।
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