SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचसंग्रह किसी तरह से परिणत करके छोड़ दे, उतने कालविशेष को बादर द्रव्य पुद्गलपरावर्तन कहते हैं। इस प्रकार से बादर द्रव्य पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप बतलाने के बाद अब सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन का वरूप बतलाते हैं 'अन्नयरतणुट्ठिओ सुहुमो' अर्थात् औदारिक आदि शरीर में से किसी एक शरीर में रहते हुए संसार में परिभ्रमण करने वाला जीव जितने काल में जगद्वर्ती समस्त परमाणुओं को उसी शरीर रूप से स्पर्श (ग्रहण) करके छोड़ दे, उतने कालविशेष को सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि जितने काल में लोकाकाश में विद्यमान समस्त परमाणुओं को औदारिक आदि में से किसी भी विवक्षित एक शरीर में परिणत करके छोड़ने में जितना काल हो, उतने काल को सूक्ष्म द्रव्य पुदगलपरावर्तन कहते हैं । ___ इस प्रकार से सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप जानना चाहिये। ___ यद्यपि बादर और सूक्ष्म दोनों द्रव्य पुद्गलपरावर्तनों में ग्रहण योग्य औदारिक आदि वर्गणाओं के पुद्गलों को ग्रहण किया जाता है, लेकिन इन दोनों (बादर और सूक्ष्म) में इतना विशेष है कि बादर में औदारिक, वैक्रिय आदि के जगद्वर्ती समस्त परमाणुओं को जिस किसी भी रूप में परिणत करे, वह उनका परिणाम माना जाता है और सूक्ष्म में औदारिक रूप में परिणत करते हुए यदि बीच में वैक्रिय रूप से परिणत करने लगे तो उनका उस रूप में परिणाम नहीं गिना जाता है। किन्तु काल गिन लिया जाता है। बादर में तो किसी न किसी प्रकार से जगद्वर्ती समस्त परमाणुओं को आहारक' को छोड़कर औदारिक आदि कार्मण वर्गणा पर्यन्त १ यहाँ आहारकशरीर को ग्रहण न करने का कारण यह है कि आहारकशरीर एक जीव के अधिक से अधिक चार बार हो सकता है । अतः वह पुद्गलपरावर्तन के योग्य नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy