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________________ बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३८ कहते हैं अब अनुक्रम से इन चारों का वर्णन करते हैं । द्रव्य पुद्गलपरावर्तन सर्वप्रथम बादर और सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप संसारंमि अडतो जाव य कालेण फुसिय सव्वाणू । इगु जोवु मुयई बायर अन्नयरतणुट्ठिओ सुहुमो ॥३८॥ शब्दार्थ-संसारंमि-संसार में, अडतो-परिभ्रमण करता हुआ, जाव-जितने, य-और, कालेण-काल द्वारा, फुसिय-स्पर्श करके, सव्वाणू - समस्त अणुओं को, इगु---एक, जीव-जीव, मुयइ–छोड़ता है, बायर-बादर, अन्नयरतणुट्ठिओ--अन्यतर शरीर में रहते हुए, सुहुमो---सूक्ष्म । गाथार्थ-संसार में परिभ्रमण करता हुआ कोई जीव जितने काल में समस्त अणुओं को (औदारिकादि शरीर रूप में) स्पर्श करके छोड़ता है, उतने काल को बादर द्रव्य पुद्गलपरावर्तन कहते हैं और किसी अन्यतर (किसी भी एक) शरीर में रहते हुए समस्त अणुओं को जितने काल में स्पर्श करे, उस काल को सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन कहते हैं । विशेषार्थ-गाथा में पुदगलपरावर्तन के चार भेदों में से बादर, सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तनों का स्वरूप बतलाया है। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है___ 'संसारंमि अडंतो' अर्थात् कर्मवशात् जीव जिसके अन्दर परिभ्रमण करें, भटके, उस चौदह राजप्रमाण क्षेत्र को संसार कहते हैं। इस संसार में परिभ्रमण करता हुआ कोई एक जीव सम्पूर्ण चौदह राजू लोक में जो परमाणु हों, उनको जितने काल में स्पर्श करके छोड़ दे, यानि कि औदारिकादि रूप में परिणमित-परिणमित करके छोड़ दे, उतने कालविशेष को बादर द्रव्य पुदगलपरावर्तन कहते हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ कि जितने काल में एक जीव जगत् में विद्यमान समस्त परमाणुओं को यथायोग्य रीति से औदारिक, वैक्रिय, तैजस्, भाषा, श्वासोच्छ्वास, मन और कार्मण इन सातों रूप में से किसी न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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