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पंचसंग्रह अन्तमुहूर्त काल में ही सम्यक्त्व प्राप्त हो सकता है और उत्कृष्ट से कुछ कम अर्ध पुद्गलपरावर्तनकाल पर्यन्त होता है। क्योंकि सम्यक्त्व से गिरा हुआ जीव अधिक से अधिक देशोन अर्ध पुद्गलपरावर्तन के अन्त में अवश्य सम्यक्त्व प्राप्त करता है। इसी कारण मिथ्यादृष्टि का सादि-अनन्त काल नहीं होता है। क्योंकि मिथ्यात्वगुणस्थान का जब सादित्व होता है तब उत्कष्ट से किंचित् न्यून अर्ध पुद्गलपरावर्तन के अन्त में अवश्य सम्यक्त्व प्राप्त करके मिथ्यात्व का अन्त करता है, अनन्तकाल तक मिथ्यात्व में नहीं रहता है ।
सादि-सांत मिथ्यात्व का उत्कृष्ट काल देशोन अर्ध पुद्गलपरावर्तन बताया है । अतः अब पुद्गलपरावर्तन का वर्णन करते हैं । पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप और भेद
पोग्गलपरियट्टो इह दवाइ चउन्विहो मुणेयव्वो।
एक्केको पुण दुविहो बायरसुहुमत्तभेएणं ॥३७॥ शब्दार्थ-पोग्गलपरियट्टो-पुद्गलपरावर्तन, इह --यहाँ, दवाइद्रव्यादि के भेद से, चउम्विहो-चार प्रकार का, मुणेयव्वो-जानना चाहिये, एक्केक्को---एक-एक, पुण-~-पुनः फिर, दुविहो-दो प्रकार का, बायरसुहुमत्तभेएणं-बादर और सूक्ष्म के भेद से ।
गाथार्थ-यहाँ पुद्गलपरावर्तन द्रव्यादि के भेद से चार प्रकार का जानना चाहिये तथा एक-एक (प्रत्येक) बादर और सूक्ष्म के भेद से दो-दो प्रकार का है।
विशेषार्थ-गाथा में पुद्गलपरावर्तन के भेद और उन भेदों के भी अन्य प्रकारों का निर्देश किया है कि पुद्गलपरावर्तन द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से चार प्रकार का है । अतएव उनके नाम इस प्रकार जानना चाहिये--(१) द्रव्य पुद्गलपरावर्तन, (२) क्षेत्र पुद्गल. परावर्तन, (३) काल पुद्गलपरावर्तन और (४) भाव पुद्गलपरावर्तन । ये प्रत्येक बादर और सूक्ष्म के भेद से दो-दो प्रकार के हैं। यथा-बादर द्रव्य पुद्गलपरावर्तन, सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन । इसी प्रकार प्रत्येक के भेद जानना चाहिये।
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