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________________ ८८ पंचसंग्रह अन्य संज्ञो जीवों की इतनी भवस्थिति नहीं होती है। वह इस प्रकार है संज्ञी जीवों के चार प्रकार हैं-नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव । सात नरकपृथ्वी के भेद से नारक सात प्रकार के हैं। उनमें से (१) रत्नप्रभापृथ्वी के नारक की जघन्य आयु दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम, (२) शर्कराप्रभा के नारक की जघन्य आयु एक सागरोपम, उत्कृष्ट तीन सागरोपम, (३) बालुकाप्रभा के नारक की जघन्य आयु तीन सागरोपम, उत्कृष्ट सात सागरोपम, (४) पंकप्रभा के नारक की जघन्य आयु सात सागरोपम, उत्कृष्ट दस सागरोपम, (५) धूमप्रभा के नारक की जघन्य आयु दस सागरोपम, उत्कृष्ट सत्रह सागरोपम की, (६) तमःप्रभा के नारक की जघन्य आयु सत्रह सागरोपम, उत्कृष्ट बाईस सागरोपम और (७) सातवीं पृथ्वी महातमप्रभा के नारक की जघन्य आयु बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम प्रमाण है। संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंच के पांच भेद हैं-जलचर, चतुष्पद, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प और खेचर। इनमें से जलचर तियंचों की उत्कृष्ट आयु पूर्वकोटि वर्ष की है, चतुष्पद स्थलचर की तीन पल्योपम की, उरपरिसर्प स्थलचर को पूर्वकोटि वर्ष की, भुजपरिसर्प स्थलचर की पूर्वकोटि वर्ष और खेचर की उत्कृष्ट आयु पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। संज्ञो पंचेन्द्रिय पर्याप्त मनुष्यों की उत्कृष्ट भवस्थिति तीन पल्योपम प्रमाण है। देव चार प्रकार के हैं-भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष और वैमानिक । इनमें से भवनपति दस प्रकार के हैं-असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत. १ गब्भंमि पुव्वकोडी तिन्नि य पलिओवमाइं परमाउं । उरभुयग पुव्वकोडी पलिओवमअसंखभागो य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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