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दहे
बंधक - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३५
कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वायुकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वोपकुमार और दिक्कुमार । ये दसों भवनपति दो-दो प्रकार के हैं - ( १ ) मेरुपर्वत के दक्षिणार्ध भाग में रहने वाले और (२) मेरुपर्वत के उत्तरार्ध भाग में रहने वाले । दक्षिणार्ध भाग में रहने वाले असुरकुमारों की उत्कृष्ट आयु एक सागरोपम और उत्तरार्ध भाग में रहने वालों की कुछ अधिक एक सागरोपम की है तथा दक्षिणार्ध में रहने वाले नागकुमार आदि नौ भवनपति देवों की उत्कृष्ट आयु डेढ़ पल्योपम और उत्तरार्ध में रहने वालों की उत्कृष्ट आयु देशोन दो पत्योपम की है' तथा दक्षिणार्धवर्ती असुरकुमारों के स्वामी चमरेन्द्र की देवियों की उत्कृष्ट आयु साड़े तीन पल्योपम की और उत्तरवर्ती असुरकुमारों के स्वामी बलीन्द्र की देवियों की उत्कृष्ट आयु साढ़े चार पल्योपम की है तथा दक्षिणदिग्वर्ती नागकुमार आदि नौ निकायों की देवियों की उत्कृष्ट आयु डेढ़ पल्योपम है और उत्तरदिग्वर्ती नो निकाय की देवियों की उत्कृष्ट आयु देशोन दो पल्योपम की है । इन्द्र-इन्द्राणी की जो उत्कृष्ट आयु कही है, वह समस्त देव देवियों के लिये भी समझना चाहिये तथा समस्त भवनपति देव देवियों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष प्रमाण है ।
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व्यंतर आठ प्रकार के हैं-पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किंनर, किंपुरुष, महोरग और गंधर्व । इन आठों प्रकार के व्यंतरों की उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम और जघन्य आयु दस हजार वर्ष प्रमाण है तथा व्यंतरी की जघन्य आय दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट आयु अर्ध पत्योपम है ।
१ तत्त्वार्थधिगम सूत्र ४ / ३१ में पौने दो पल्य की बताई है ।
२ बृहत्संग्रहिणी, गाथा ४ में दक्षिणदिग्वर्ती नागकुमार आदि नौ निकायों की देवियों की उत्कृष्ट आयु अर्ध पल्योपम और उत्तरवर्ती देवियों की उत्कृष्ट आयु देशोन एक पल्योपम बताई है ।
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