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बंधक - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३५
की सात हजार वर्ष, बादर पर्याप्त तेजस्काय की तीन दिन-रात, पर्याप्त बादर वायुकाय को तीन हजार वर्ष और पर्याप्त बादर प्रत्येक वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट आयु दस हजार वर्ष प्रमाण है । अतएव पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय की बाईस हजार वर्ष की उत्कृष्ट आयु बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय की अपेक्षा से ही घटित होती है, और दूसरे एकेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा नहीं ।
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पर्याप्त द्वीन्द्रिय की उत्कृष्ट आयु बारह वर्ष की है। पर्याप्त त्रीन्द्रिय की उनचास दिन की और पर्याप्त चतुरिन्द्रिय की उत्कृष्ट आयु छह मास की है तथा पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट आयु पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण है, जो पर्याप्त संमूच्छिम जलचर को अपेक्षा से जानना चाहिये, परन्तु संमूच्छिम स्थलचर आदि की अपेक्षा से नहीं । क्योंकि उनकी उत्कृष्ट आयु इतनी नहीं होती है । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
पर्याप्त संमूच्छिम जलचर की उत्कृष्ट आयु पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण, पर्याप्त संमूच्छिम चतुष्पद स्थलचर की चौरासी हजार वर्ष, पर्याप्त संमूच्छिम उरपरिसर्प की त्रेपन हजार वर्ष, पर्याप्त संमूच्छिम भुजपरिसर्प की बियालीस हजार वर्ष और पर्याप्त संमूच्छिम खेचर की बहत्तर हजार वर्ष की उत्कृष्ट आयु होती है । इस प्रकार संमूच्छिम पर्याप्त जलचर की अपेक्षा से ही पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय को पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण आयु घटित होती है, अन्य संमूच्छिम स्थलचर आदि की अपेक्षा से नहीं ।
पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट भवस्थिति तेतीस सागरोपम है और वह अनुत्तर विमानवासी देव अथवा सातवीं नरकपृथ्वी के नारक की अपेक्षा जानना चाहिये, अन्य संज्ञी जीवों को अपेक्षा नहीं । क्योंकि
१ इसी प्रकार से दिगम्बर साहित्य में भी पर्याप्त बादर पृथ्वीकाय आदि की भवस्थिति बतलाई है । देखो - मूलाचार गाथा ११०५-११११ ।
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