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पंचसंग्रह
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अन्तर्मुहूर्त मात्र ही जीते हैं । लेकिन इतना विशेष है कि जघन्य से उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त बड़ा है तथा शेष बादर एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकों की जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होती है और वह दो सौ छप्पन आवलिका से अधिक ही होती है ।
इस प्रकार से अपर्याप्तकों की एवं सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक की जघन्य व उत्कृष्ट भवस्थिति का प्रमाण बतलाने के बाद अब पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय आदि की उत्कृष्ट आयु (भवस्थिति) का प्रमाण बतलाते हैं
बावीस सहस्सा बारस वासाई अउणपन्नदिणा । छम्मास पुण्वकोडी तेत्तीसयराई उबकोसा ||३५|| शब्दार्थ - बावीससहस्साइं - बाईस हजार, बारस - बारह, वासाई - वर्ष, अउणपन्नदिणा- - उनचास दिन, छम्मास - छह मास पुथ्वकोडी - पूर्वकोटि, तेत्तीसयराई - तेतीस सागरोपम, उक्कोसा - उत्कृष्ट
गाथार्थ - (बादर) एकेन्द्रिय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यन्त की क्रमशः बाईस हजार वर्ष, बारह वर्ष, उनचास दिन, छह मास, पूर्वकोटि वर्ष और तेतीस सागरोपम की उत्कृष्ट आयु है ।
विशेषार्थ - पूर्व गाथा में चौदह जोवभेदों में से पर्याप्त बादर एकेन्द्रियादि की जघन्य आयु का प्रमाण बतलाया है । अब यहां सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त को छोड़कर शेष बादर एकेन्द्रिय आदि पर्याप्त जीवों की उत्कृष्ट आयु का प्रमाण बतलाते हैं कि पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय आदि का बाईस हजार आदि संख्या पदों के साथ अनुक्रम से इस प्रकार सम्बन्ध करना चाहिये
पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय की उत्कृष्ट आयु बाईस हजार वर्ष की है । किन्तु वह आयु पर्याप्त बादर पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय की अपेक्षा जानना चाहिये । जलकाय आदि शेष एकेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा नहीं । क्योंकि शेष एकेन्द्रिय जीवों की इतनी दीर्घ आयु नहीं होती है । बादर पर्याप्त पृथ्वी काय की उत्कृष्ट आयु बाईस हजार वर्ष, बादर पर्याप्त जलकाय
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