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योगोपयोगमार्गणा : गाथा ६
समुदाय में एक प्रकार की अभिव्यक्ति प्रकट हो जाती है और उससे वे दृष्टिगोचर होते हैं । बादरनामकर्म के कारण ही बादर जीवों का मूर्त द्रव्यों के साथ घात-प्रतिघात आदि होता है।
बादर और सूक्ष्म का यह विचार अल्पाधिक अवगाहना या प्रदेशों की अपेक्षा नहीं समझना चाहिए। क्योंकि सूक्ष्म शरीर से भी असंख्यातगुणहीन अवगाहना वाले और बादरनामकर्म के उदय से उत्पन्न हुए बादर शरीर की उपलब्धि होती है तथा तैजस और कार्मण शरीर, अनंत प्रदेशी हैं, किन्तु सघन और सूक्ष्म परिणमन वाले होने से इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं होते हैं।
सूक्ष्म और बादर, ये दोनों जीवविपाकिनी प्रकृतियाँ हैं, लेकिन इनकी अभिव्यक्ति शरीर के पुद्गलों के माध्यम से होती है। जिसका विशेष स्पष्टीकरण आगे किया जायेगा।
सारांश यह है कि बादरनामकर्म पृथ्वीकाय आदि जीवों में एक प्रकार के बादर परिणाम को उत्पन्न कर देता है। जिससे उनके शरीर में एक प्रकार की अभिव्यक्ति प्रकट हो जाती है और वे दृष्टिगोचर हो जाते हैं। घात-प्रतिघात आदि होने लगता है। जबकि सूक्ष्मनामकर्म पृथ्वीकाय आदि जीवों में इस प्रकार का सूक्ष्म परिणाम उत्पन्न करता है कि वे अनन्त शरीर एकत्रित हो जाने पर भी दृष्टिगोचर नहीं हो पाते हैं और व्याघातरहित हैं। कर्मशक्ति की विचित्रता का यह परिणाम है। पंचेन्द्रियों में संज्ञी, असंज्ञो भेद मानने का कारण ___ संसार में नरक, तिथंच, मनुष्य और देव गति के रूप में विद्यमान समस्त जीवों में से तिर्यंचगति के जीवों के अतिरिक्त शेष नारक, मनुष्य
और देव पंचेन्द्रिय ही होते हैं। उन्हें स्पर्शन आदि श्रोत्र पर्यन्त पांचों इन्द्रियाँ होती हैं । लेकिन तिर्यंच जीवों में किन्हीं को एक, किन्हीं को दो, तीन, चार या पांच इन्द्रियाँ होती हैं । एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक के जीवों में मन नहीं होने से असंज्ञी और पंचेन्द्रिय वाले
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