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पंचसंग्रह
जीव त्रस कहलाते हैं ।" पृथ्वीकाय आदि पांचों प्रकार के स्थावर - एकेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं-सूक्ष्म और बादर । किन्तु द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों में सूक्ष्म या बादर कृत भेद नहीं है । वे सभी बादर ही होते हैं। पंचेन्द्रिय जीवों में कोई-कोई जीव मनसहित और कोई-कोई मनरहित होते हैं । जो पंचेन्द्रिय जीव मन• सहित हैं, उन्हें संज्ञी - समनस्क और मनरहित पंचेन्द्रिय जीवों को असंज्ञी - अमनस्क कहते हैं ।
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एकेन्द्रियों के सूक्ष्म, बादर भेद का कारण
एकेन्द्रियों के सूक्ष्म और बादर, यह दो भेद मानने का कारण यह है कि सूक्ष्म शरीर वाले एकेन्द्रिय जीव आंखों से तो नहीं देखे जा सकते हैं, लेकिन इनका अस्तित्व ज्ञानगम्य है और बादर शरीर वाले एकेन्द्रिय जीव ज्ञानगम्य होने के साथ-साथ आँखों से भी दिखाई देते हैं । सूक्ष्म और बादर शरीर की प्राप्ति सूक्ष्म और बादर नामकर्म के उदय से होती है । सूक्ष्म नामकर्म के उदय से प्राप्त शरीर स्वयं न किसी से रुकता है और न किसी को रोकता है । अर्थात् यह व्याघात से रहित है तथा अन्य जीवों के अनुग्रह या उपघात के अयोग्य होता है और यह प्रत्यक्षसिद्ध भी है । जैसे सूक्ष्म होने से अग्नि लोहे के गोले में प्रविष्ट हो जाती है, उसी प्रकार सूक्ष्मनामकर्म के उदय से प्राप्त शरीर भी लोक के किसी भी प्रदेश में प्रविष्ट हो सकता है ।
अन्य को बाधा पहुँचाने वाले शरीर का निवर्तक बादरनामकर्म है । आंखों से दिखलाई देना, आँखों से देखा जा सके, चक्ष इन्द्रिय का विषय हो - यही बादर का अर्थ नहीं है । क्योंकि एक-एक बादरकाय वाले पृथ्वीकाय आदि का शरीर प्राप्त होने पर भी वह देखा नहीं जा सकता है । परन्तु बादरनामकर्म पृथ्वीकाय आदि जीवों में एक प्रकार के बादर परिणाम को उत्पन्न करता है, जिससे उनके शरीर
— स्थानांग २ / ५७
१ (क) संसारसमावन्नगा तसे चेव थावरे चेव ।
(ख) तत्त्वार्थसूत्र २ / १२
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