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________________ योमोपयोगमार्गणा : गाथा ५ साकारोपयोग, अचक्खुदंसणाइ ---अचक्षुदर्शनादि, चउह-चार प्रकार का, उवओगो-उपयोग, अणागारो-अनाकार । गाथार्थ-तीन अज्ञान और पांच ज्ञान, इस प्रकार साकारोपयोग आठ प्रकार का है और अचक्ष दर्शनादि चार प्रकार का अनाकारोपयोग है। विशेषार्थ- गाथा में उपयोग के प्रकारों, उनके भेदों की संख्या और नाम बताये हैं। • उपयोग का लक्षण पहले कहा जा चुका है। चैतन्यानुविधायी परिणामरूप यह उपयोग जीव के सिवाय अन्य द्रव्यों में नहीं पाया जाता है । जीव की प्रवत्ति में सदैव अन्वयरूप से उसका परिणमन होता रहता है। जोव का स्वरूप होने से उपयोग का वैसे तो कोई भेद नहीं किया जा सकता है, लेकिन वस्तु सामान्य-विशेषात्मक है।' ये सामान्य और विशेष सर्वथा स्वतन्त्र धर्म नहीं हैं। क्योंकि जैसे सामान्य से सर्वथा भिन्न विशेष नाम का कोई पदार्थ नहीं है, वैसे ही अपने विशेष को छोड़कर केवल सामान्य भी कहीं पर नहीं पाया जाता है। किन्तु सामान्य से अनुविद्ध होकर ही विशेष की उपलब्धि होती है और विशेष से अनुस्यूत सामान्य की ।' फिर भी इन दोनों में कथंचित् भेद है । क्योंकि सामान्य अन्वय, निर्विकल्प लक्षण वाला है और विशेष व्यतिरेक, सविकल्प स्वरूप वाला। उपयोग के द्वारा वस्तु के ये दोनों धर्म ग्रहण किये १ सामान्य विशेषात्मक वस्तु । -आप्तपरीक्षा ६ २ निर्विशेषं हि सामान्यं भवेत्खरविषाणवत् । सामान्यरहितत्वाच्च विशेषस्तद्वदेव हि ॥ -आप्तपरीक्षा ३ ण सामण्णवदिरित्तो विसेसो वि अत्यि, सामण्णणुविद्धस्सेव विसेसस्सु वलंभादो। -कषायपाहुड १/१/२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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