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पंचसंग्रह
जाते हैं। जिससे उपयोग के दो भेद हो जाते हैं-(१) अनाकारोपयोग और (२) साकारोपयोग ।'
निर्विकल्प, सामान्य को ग्रहण करने वाले उपयोग को अनाकारोपयोग और सविकल्प, विशेष को ग्रहण करने वाले उपयोग को साकारोपयोग कहते हैं। __साकार और अनाकार उपयोग के क्रमशः ज्ञान और दर्शन ये अपर नाम हैं। ज्ञान और दर्शन को क्रमशः साकार और अनाकार रूप मानने का कारण यह है कि ज्ञान पदार्थों को विशेष-विशेष करके अर्थात् नाम, जाति, गण, लिंगादि धर्मों की ओर अभिमुख होकर जानता है. इसीलिये ज्ञान साकारोपयोगी है और दर्शन सामान्य-विशषात्मक पदार्थों के आकार-विशेष को ग्रहण न करके केवल निर्विकल्प रूप से स्वरूप मात्र सामान्य का ग्रहण करने वाला होने से अनाकारो
१ (क) सो दुविहो णायव्वो सायारो चेवणायारो।
-गोम्मटसार, जीवकांड गाथा ६७१ (ख) स द्विविधोऽष्ट चतुर्भेदाः ।
-तत्त्वार्थसूत्र २/४ २ (क)......"अनाकारः, पूर्वोक्तस्वरूपाकार विवर्जित उपयोगः ।
---पंच संग्रह, मलयगिरिटीका पृ. ७ (ख) यत्सामान्यमनाकारं ।
-पंचाध्यायी उ० ३६४ (ग) अविसेसिऊण जं गहण उवओगो सो अणागारो।
-~-गोम्मटसार, जीवकांड गाथा ६७४ ३ (क) आकारः प्रतिवस्तुनियतो ग्रहण परिणामः 'आगारो उ विसेसो' इति वचनात्, सह आकारेण वर्तत इति साकारः।।
___-पंचसंग्रह, मलयगिरिटीका पृ. ७ (ख) सहाकारेण वर्तत इति साकारः वस्तुस्वरूपावधारणरूपो विशेषज्ञानमिति ।
- पंचसंग्रह, म्वोपज्ञवृत्ति पृ. ६ (ग) साकारं तद्विशेषभाक् ।
-पंचाध्यायी उ० ३६४ ४ साकारं ज्ञानम अनाकारं दर्शनमिति ।
-सर्वार्थसिद्धि २/6
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