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________________ उन्हीं के आधार से पश्चाद्वर्ती समय में विभिन्न आचार्यों ने कर्मसिद्धान्त विवेचक ग्रन्थों की रचना की, जिनको दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-(१) आकर कर्मशास्त्र, (२) प्राकरणिक कर्मशास्त्र । ____ आकर कर्मशास्त्रों की रचना पूर्वात्मक कर्मशास्त्र का आधार लेकर की गई है। भगवान महावीर के बाद करीब ६०० या १००० वर्ष तक क्रमिक ह्रास के रूप में पूर्व विद्या का अस्तित्व रहा और तत्पश्चात् ऐसा समय आ गया जब पूर्वात्मक कर्मशास्त्र का मूल अंश विद्यमान न रहने पर आकर ग्रन्थों की रचना होना प्रारम्भ हो गया । यह आकर विभाग पूर्वात्मक कर्मशास्त्र से यद्यपि छोटा है, फिर भी वर्तमान अभ्यासियों के लिये समझने और पढ़ने के लिये पर्याप्त है । इसमें कहीं-कहीं शृंखला खंडित हो जाने पर भी कुछ-न-कुछ पूर्व से उधृत अंश सुरक्षित है। प्राकरणिक कर्मशास्त्र में कर्मविषयक छोटे-बड़े अनेक प्रकरण ग्रन्थ सम्मिलित हैं। जिनका आकर ग्रन्थों में प्रवेश करने की दृष्टि से महत्त्व है। इस लाघव से पाठकों को कर्मशास्त्र के अभ्यास में सरलता अवश्य हो गई पर समग्र शास्त्र का पूर्वापर सम्पर्कसूत्र खण्डित हो गया और ऊपरी तौर पर कर्मसिद्धान्त के स्थूल अंशों का ज्ञान करना पर्याप्त समझ लिया गया। इसका परिणाम यह हआ कि कर्मसिद्धान्त के अध्ययन-अध्यापन में व्यवधान आया और दुरुह समझ कर उपेक्षणीय दृष्टि से देखा जाने लगा। जबकि कर्मशास्त्र का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाये तो उससे सुगम अन्य कोई शास्त्र नहीं है । वर्तमान में अध्ययन-अध्यापन की प्रवृत्ति को वेग मिलने से शिक्षित वर्ग में साहित्य के सभी अंगों और विद्याओं को जानने की उत्सुकता बढ़ी है। साहित्यिक अनुसंधान कार्य में सैकड़ों शिक्षाशास्त्री संलग्न हैं। इसी सन्दर्भ में जैन कर्मसाहित्य पर भी विद्वानों की दृष्टि गई है। जिससे कर्मसिद्धान्त के विवेचक प्रौढ़ ग्रन्थ प्रकाश में आये और उनका अध्ययन करने वालों का भी एक अच्छा विद्व-मंडल बनता जा रहा है। इसके अतिरिक्त दर्शनान्तरगत कर्मविवेचन के साथ जैन कर्ममन्तव्य की तुलना के लिये अनुशीलन कार्य भी हो रहे हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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