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षष्ठ कर्मग्रन्थ
४६ हो गया है, उसके अन्तिम समय में-साता का उदय, साता की सत्ता यह चौथा भंग पाया जाता है। इस प्रकार वेदनीय कर्म के कुल आठ भंग होते हैं। जिनका विवरण इस प्रकार समझना चाहिये -
-
मंग क्रम
बंध
उदय
सत्ता
अ०
अ०
अ०
सा.
- Know
सा०
अ०
सा.
सा०
गुणस्थान सा० असा० २ १, २, ३, ४, ५, ६,
| १, २, ३, ४, ५, ६,
१ से १३ तक १ से १३ तक १४ द्विचरम समय पर्यन्त १४ द्वि चरम समयपर्यन्त
१४ चरम समय में सा० १४ चरम समय में
असा० सा० अ० सा०
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आयुकर्म के संवेध भंग
अब गाथा में बताये गये क्रम के अनुसार आयुकर्म के बंधादि स्थान और उनके संवेध भंगों का विचार करते हैं। आयुकर्म के चार भेदों में क्रम से पाँच, नौ, नौ, पाँच भंग होते हैं। अर्थात् नरकायु के
१ (क) तेरसमछट्ठएएसुं सायासायाण बंधवोच्छेओ।
संतउइण्णाइ पुणो सायासायाइ सव्वेसु ॥ बंधइ उइण्णयं चि य इयरं वा दो वि संत चउमंगो। संत मुइण्णमबंधे दो दोण्णि दुसंत इइ अट्ठ ।
--पंचसंग्रह सप्ततिका गा० १७, १८ (ख) सादासादेक्कदरं बंधुदया होंति संभवट्ठाणे ।
दोसत्तं जोगित्ति य चरिमे उदयागदं सत्तं । छट्ठोत्ति चारि भंगा दो भंगा होंति जाव जोगिजिणे । चउभंगाऽजोगिजिणे ठाणं पडि वेयणीयस्स ।।
-गो० कर्मकांड, गा० ६३३, ६३४
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