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________________ सप्ततिका प्रकरण पांच, तिर्यंचायु के नौ, मनुष्यायु के नौ और देवायु के पांच संवेध भंग होते हैं । जिनका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है एक पर्याय में किसी एक आयु का उदय और उसके उदय में बंधने योग्य किसी एक आयु का ही बंध होता है, दो या दो से अधिक का नहीं। इसलिये बंध और उदय की अपेक्षा आयु का एक प्रकृतिक बंधस्थान और एक प्रकृतिक उदयस्थान होता है किन्तु सत्तास्थान दो प्रकृतिक और एक प्रकृतिक इस प्रकार दो होते हैं। क्योंकि जिसने परभव की आयु का बंध कर लिया है, उसके दो प्रकृतिक तथा जिसने परभव की आयु का बंध नहीं किया है, उसके एक प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। __ अब आयुकर्म के संवेध भंगों को बतलाते हैं। आयुकर्म की तीन अवस्थाएँ होती हैं १. परभव सम्बन्धी आयुकर्म के बंधकाल से पूर्व की अवस्था । २. परभव सम्बन्धी आयु के बंधकाल की अवस्था । ३. परभव सम्बन्धी आयुबंध के उत्तर-काल की अवस्था ।२ इन तीनों अवस्थाओं को क्रमश: अबन्धकाल, बंधकाल और उपरतकाल कहते हैं। सर्वप्रथम नरकायु के संवेध भंगों का विचार करते हैं। १ आयुषि सामान्येनैकं बंधस्थानं चतुर्णामन्यतमत्, परस्परविरुद्धत्वेन युग पद द्वित्रायुषां बन्धाभावत् । उदयस्थानमप्येकम्, तदपि चतुर्णामन्यतमत्, युगपद् द्वित्रायुषां उदयाभावात् । द्वे सत्तास्थाने, तद्यथा-द्वे एकं च । तत्रैक चतुर्णामन्यतमत् यावदन्यत् परभवायुर्न बध्यते, परभवायुषि च बद्धे यावदन्यत्र परभवे नोत्पद्यते तावद् द्वे सती। -सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १५६ २ तत्रायुषस्तिस्रोऽवस्थाः, तद्यथा-परभवायुर्बन्धकालात् पूर्वावस्था परभवायुर्बन्धकालावस्था परभवायुर्बन्धोत्तरकालावस्था च । सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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