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________________ सप्ततिका प्रकरण क्षपक जीव अत्यन्त विशुद्ध होता है, अतः उसके निद्रा और प्रचला प्रकृति का उदय नहीं होता है, जिससे उसमें पहला और तीसरा यह दो भंग प्राप्त होते हैं। पहला भंग-छह प्रकृतिक बंध, चार प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता-क्षपक जीवों के अपूर्वकरण गुणस्थान के प्रथम भाग तक होता है तथा तीसरा भंग-चार प्रकृतिक बंध, चार प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता-क्षपक जीवों के नौवें अनिवृत्तिबादरसंपराय गुणस्थान के संख्यात भागों तक होता है । क्षपक जीवों के लिए एक और विशेषता समझना चाहिए कि अनिवृत्तिबादर संपराय गुणस्थान में स्त्याद्धित्रिक का क्षय हो जाने से आगे नौ प्रकृतियों का सत्व नहीं रहता है। अतः अनिवृत्तिबादरसंपराय गुणस्थान के संख्यात भागों से लेकर सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान के अन्तिम समय तक चार प्रकृतिक बंध, चार प्रकृतिक उदय और छह प्रकृतिक सत्ता, यह एक और भंग होता है-'चउबंधुदए छलसा य' । यह भंग उपर्युक्त चार भंगों से पृथक् है। इस प्रकार दर्शनावरण की उत्तर प्रकृतियों का यथासंभव बंध रहते हुए कितने भंग संभव हैं, इसका विचार किया। अब उदय और सत्ता की अपेक्षा दर्शनावरण कर्म के संभव भंगों का विचार करते हैं। __ 'उवरयबंधे चउ पण नवंस'-बंध का विच्छेद हो जाने पर विकल्प से चार या पाँच का उदय तथा नौ की सत्ता वाले दो भंग होते हैं । उक्त दो भंग इस प्रकार हैं १-चार प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता। २-पांच प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता । इन दोनों भंगों के बनने का कारण यह है कि उपशान्तमोह गुणस्थान में दर्शनावरण की सभी नौ प्रकृतियों की सत्ता पाई जाती है। और उदय विकल्प से चार या पांच प्रकृतियों का पाया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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