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षष्ठ कर्मग्रन्थ : गा०८
१. नौ प्रकृतिक बंध, चार प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता । यह भंग पांच निद्राओं में से किसी के उदय के बिना होता है।
२. नौ प्रकृतिक बंध, पांच प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता। यह भंग निद्रादिक में से किसी एक निद्रा के उदय के सद्भाव में होता है।
छह प्रकृतिक बंध और चार प्रकृतिक बंध के समय भी उदय और सत्ता पूर्ववत् समझना चाहिए । अर्थात् छह प्रकृतिक बंध, चार या पांच प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता तथा चार प्रकृतिक बंध, चार या पांच प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता। इनमें से छह प्रकृतिक बंध, चार या पांच प्रकृतिक उदय, नौ प्रकृतिक सत्तास्थान, तीसरे सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर उपशामक अपूर्वकरण (आठवें) गुणस्थान के पहले भाग तक के जीवों में होता है और दूसरा चार प्रकृतिक बंध, चार या पाँच प्रकृतिक उदय, नौ प्रकृतिक सत्तास्थान उपशामक अपूर्वकरण गुणस्थान के दूसरे भाग से लेकर सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक के जीवों के होता है। इन दोनों स्थानों की अपेक्षा कुल चार भंग इस प्रकार होते हैं
१-छह प्रकृतिक बंध, चार प्रकतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता ।
२-छह प्रकृतिक बंध, पांच प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता ।
३-चार प्रकृतिक बंध, चार प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता ।
४-चार प्रकृतिक बंध, पांच प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्ता ।
उक्त चार भंगों में से क्षपकश्रेणि में कुछ विशेषता है। क्योंकि
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