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सप्ततिका प्रकरण
शब्दार्थ-बीयावरणे-दूसरे आवरण-दर्शनावरण में, नवबंधगेसु-नौ के बंध के समय, चउपंच-चार या पाँच का, उदयउदय, नवसंता-नौ प्रकृतियों की सत्ता, छच्चउबंधे-छह और चार २. बंध में, चेवं-पूर्वोक्त प्रकार से उदय और सत्ता, चउबंधुदएचार के बंध और चार के उदय में, छलंसा-छह की सत्ता, यऔर, उवरयबंधे-बंध का विच्छेद होने पर, चउपण-चार अथवा पाँच का उदय, नवंस-नौ की सत्ता, चउरुदय-चार का उदय, छ-छह, च-और, चउसंता-चार की सत्ता।
गाथार्थ-दर्शनावरण की नौ प्रकृतियों का बंध होते समय चार या पाँच प्रकृतियों का उदय तथा नौ प्रकृतियों की सत्ता होतो है। छह और चार प्रकृतियों का बंध होते समय उदय और सत्ता पूर्ववत् होती है। चार प्रकृतियों का बंध और उदय रहते सत्ता छह प्रकृतियों की होती है एवं बंधविच्छेद हो जाने पर चार या पाँच प्रकृतियों का उदय रहते सत्ता लौ की होती है। चार प्रकृतियों का उदय रहने पर सत्ता छह और चार की होती है।
विशेषार्थ-गाथा में दर्शनावरण कर्म के संवेध भंगों का विवेचन किया गया है।
दर्शनावरण की नौ उत्तर प्रकृतियों का बंध पहले और दूसरेमिथ्यात्व व सासादन-गुणस्थान में होता है, तब चार या पाँच प्रकृतियों का उदय तथा नौ प्रकृतियों की सत्ता होती है-'बीयावरणे नव बंधगेसु चउ पंच उदय नव संता' । चार प्रकृतिक उदयस्थान में चक्षुदर्शनावरण आदि केवलदर्शनावरण पर्यन्त चार ध्रुवोदयी प्रकृतियों का ग्रहण किया गया है तथा पाँच प्रकृतिक उदयस्थान उक्त चार प्रकृतियों के साथ किसी एक निद्रा को मिला देने से प्राप्त होता है । इस प्रकार दर्शनावरण कर्म के नौ प्रकृतिक बंध, नौ प्रकृतिक सता रहते उदय की अपेक्षा दो भंग प्राप्त होते हैं
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