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षष्ठ कर्म ग्रन्थ : गा० ८
३६.
दर्शनावरण कर्म के बन्ध, उदय, सत्ता स्थानों का विवरण इस प्रकार समझना चाहिये
बंध & ६ ४
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उदय
१ तुलना कीजिए -
४
सत्ता ह ६
अब दर्शनावरण कर्म के बंध, उदय और सत्ता स्थानों के परस्पर संवेध से उत्पन्न भंगों का कथन करते हैं
५
बीयावरणे नवबंधगेसु चउ पंच उदय नव संता । छच्चउबंधे चेवं चउ बन्धुदए छलंसा य ॥ ॥ उवरयबंधे च पण नवंस चउरुदय छच्च चउसंता । 1
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४
बिदियावरणे णवबंधगेसु चदुपंचउदय णवसत्ता । छब्बंधगेसु एवं तह चदुबंधे छडंसा य ।। उवरदबंधे चदुपंचउदय णव छच्च सत्त चंदु जुगलं ।
- गो० कर्मकांड गा० ६३१, ६३२
दूसरे आवरण ( दर्शनावरण) की & प्रकृतियों के बंध करने वाले के उदय ५ का या ४ का और सत्ता ६ की होती है । इसी प्रकार ६ प्रकृतियों के बन्धक के भी उदय और सत्व जानना । चार प्रकृतियों के बन्ध करने वाले के पूर्वोक्त प्रकार उदय चार या पांच का, सत्व नौ का तथा छह का भी सत्व पाया जाता है । जिसके बन्ध का अभाव है, उसके उदय तो चार व पाँच का है और सत्व नौ का व छह का है तथा उदय-सत्व दोनों ही चार-चार के भी हैं ।
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