SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिका प्रकरण क्षपकश्र ेणि में होता है और क्षपकश्रेणि से जीव का प्रतिपात नहीं होता है । ३८ छह प्रकृतिक सत्तास्थान का जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । क्योंकि यह स्थान क्षपक अनिवृत्ति के दूसरे भाग से लेकर क्षीणमोह गुणस्थान के उपान्त्य समय तक होता है और उसका जघन्य व उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । चार प्रकृतिक सत्तास्थान का जघन्य व उत्कृष्ट काल एक समय है । क्योंकि यह स्थान क्षीणमोह गुणस्थान के अंतिम समय में पाया जाता है | दर्शनावरण कर्म के उदयस्थान दो हैं-चार प्रकृतिक और पाँच प्रकृतिक- 'उदयट्ठाणाई दुवे च पणगं' । चार प्रकृतिक उदयस्थान चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवल दर्शनावरण - का उदय क्षीणमोह गुणस्थान तक सदैव पाया जाता है । इसीलिए इन चारों का समुदाय रूप एक उदयस्थान है । इन चार में निद्रा आदि पांचों में से किसी एक प्रकृति के मिला देने पर पांच प्रकृतिक उदयस्थान होता है । निद्रादिक ध्रुवोदया प्रकृतियां नहीं हैं, क्योंकि उदययोग्य काल के प्राप्त होने पर उनका उदय होता है । अतः यह पाँच प्रकृतिक उदयस्थान कदाचित् प्राप्त होता है । दर्शनावरण के चार और पाँच प्रकृतिक, यह दो ही उदयस्थान होने तथा छह, सात आदि प्रकृतिक उदयस्थान न होने का कारण यह है कि निद्राओं में दो या दो से अधिक प्रकृतियों का एक साथ उदय नहीं होता है, किन्तु एक काल में एक ही प्रकृति का उदय होता है । 1 १ न हि निद्रादयो द्वित्रादिका वान्यतमा काचित् । Jain Education International युगपदुदयमायान्ति किन्त्वेकस्मिन् काले एक - सप्ततिका प्रकरण टीका, पू० १५७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy