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सप्ततिका प्रकरण
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जन्म से लेकर आठ वर्ष प्रमाण काल के व्यतीत होने पर संयम प्राप्त करके एक अन्तर्मुहूर्त काल के भीतर क्षीणमोह, सयोगकेवली हो जाता है तो वैसे ही आठ वर्ष, सात माह कम एक पूर्व कोटि वर्ष प्रमाण समझना चाहिए। यहाँ इतनी विशेषता है कि इसमें क्षीणमोह गुणस्थान का काल अन्तर्मुहूर्त घटाकर उतना काल लेना चाहिए। .... उदयस्थानों के स्वामी, काल आदि का विवरण इस प्रकार है
काल उदयस्थान | मूल प्रकृति स्वामी
जघन्य उत्कृष्ट आठ प्रकृति सभी । आदि के दस । अन्तमुहर्त । कुछ कम अपार्ध गुणस्थान
पुद्गल परावर्त सात प्रकृति मोह के बिना ११वाँ, १२वाँ | एक समय अन्तमुहूर्त
गुणस्थान चार प्रकृति चार अघाती । १३वाँ, १४वाँ | अन्तमुहूर्त | देशोन पूर्वकोट
गुणस्थान सत्तास्थान, स्वामी और काल
बन्ध और उदयस्थानों को बतलाने के बाद अब सत्तास्थानों को बतलाते हैं। सत्ता प्रकृतिक स्थान तीन हैं-आठ प्रकृतिक, सात प्रकृतिक और चार प्रकृतिक । आठ प्रकृतिक सत्तास्थान में ज्ञानावरण आदि अन्तरायपर्यन्त सब मूल प्रकृतियों का, सात प्रकृतिक सत्तास्थान में मोहनीय के सिवाय शेष सात प्रकृतियों और चार प्रकृतिक सत्तास्थान में चार अघाती कर्मों का ग्रहण किया जाता है। इसका विशेष स्पष्टीकरण यह है कि मोहनीय कर्म के सद्भाव में आठों कर्मों की, ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय की विद्यमानता में आठों
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१ सत्ता प्रति त्रीणि प्रकृतिस्थानानि । तद्यथा-अष्टौ, सप्त, चतस्रः ।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १४३
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