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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ : गा० २ १२ उदयस्थान का उत्कृष्टकाल कुछ कम अपार्धं पुद्गल परावर्त होता है | सात प्रकृतिक उदयस्थान का जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । सात मूल प्रकृतियों का उदय उपशान्तमोह और क्षीणमोह इन दो गुणस्थानों में होता है । परन्तु क्षीणमोह गुणस्थान में न तो मरण होता है और न उससे पतन होता है और क्षीणमोह गुणस्थानवर्ती जीव नियम से तीन घाती कर्मों का क्षय करके सयोगकेवली हो जाता है । लेकिन उपशान्तमोह गुणस्थान में जीव का मरण भी होता है और उससे प्रतिपात भी होता है । अतः जो जीव एक समय तक उपशान्तमोह गुणस्थान में रहकर और दूसरे समय में मरकर अविरत सम्यग्दृष्टि देव हो जाता है, उसके सात प्रकृतिक उदयस्थान का जघन्यकाल एक समय माना जाता है तथा उपशान्तमोह या क्षीणमोह गुणस्थान का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, अतः सात प्रकृतिक उदयस्थान का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त माना जाता है । चार प्रकृतिक उदयस्थान का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल कुछ कम एक पूर्व कोटि प्रमाण है । जो जीव सयोगिकेवली होकर एक अन्तर्मुहूर्त काल के भीतर निर्वाण को प्राप्त कर लेता है, उसकी अपेक्षा चार प्रकृतिक उदयस्थान का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है और उत्कृष्टकाल एक प्रकृति बंधस्थान काल की तरह देशोन पूर्व कोटि प्रमाण समझना चाहिए । अर्थात् जैसे एक प्रकृतिक बंधस्थान का उत्कृष्टकाल बतलाया है कि एक पूर्व कोटि वर्ष की आयु वाला मनुष्य सात माह गर्भ में रहकर और तदनन्तर १ घातिकर्म वर्जाश्चतस्रः प्रकृतयः तासामुदयो जघन्येनान्तमौ तिक उत्कर्षेण तु देशोनपूर्व कोटिप्रमाणः । - सप्ततिका प्रकरण टीका, प० १४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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