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________________ १२ सप्ततिका प्रकरण स्वामी ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान के जीव हैं। चार अघाती कर्मों का उदय तेरहवें सयोगिकेवली और चौदहवें अयोगिकेवली गुणस्थान तक होता है । अतएव चार प्रकृतिक उदयस्थान के स्वामी सयोगिकेवली और अयोगिकेवली जीव हैं । इन तीन उदयस्थानों में से आठ प्रकृतिक उदयस्थान के काल के तीन विकल्प हैं - १. अनादि-अनन्त, २. अनादि - सान्त और ३. सादिसान्त । इनमें से अभव्यों के अनादि-अनन्त, भव्यों के अनादि- सान्त और उपशान्तमोह गुणस्थान से गिरे हुए जीवों की अपेक्षा सादि- सांत काल होता है | 2 / सादि-सान्त विकल्प की अपेक्षा आठ प्रकृतिक उदयस्थान का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल कुछ कम अपार्धपुद्गल परावर्त प्रमाण है। जो जीव उपशमणि से गिरकर पुनः अन्तर्मुहूर्त काल के भीतर उपशमश्र णि पर चढ़कर उपशममोही हो जाता है, उस जीव के आठ प्रकृतिक उदयस्थान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त होता है और जो जीव अपार्ध पुद्गल परावर्त काल के प्रारम्भ में उपशान्तमोही और अन्त में क्षीणमोही हुआ है, उसके आठ प्रकृतिक १. अट्ठदओ सुमो त्तिय मोहेण विणा हु चउक्करसुदओ चादिदराण संतखोणेसु । केवलिदुगे नियमा ॥ - गो० कर्मकांड, गा० ४५४ -- सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक आठ प्रकृतियों का उदय है । उपशान्तकषाय और क्षीणकषाय इन दो गुणस्थानों में मोहनीय के बिना सात का उदय है तथा सयोगि और अयोगि इन दोनों में चार अघातिया कर्मों का उदय नियम से जानना चाहिए । २. तत्र सर्व प्रकृतिसमुदायोऽष्टी, तासां चोदयोऽभव्यानधिकृत्य अनाद्यपर्यवसितः, भव्यानधिकृत्याना दिसपर्यवसानः, उपशान्त मोहगुणस्थानकात् प्रतिपतितानधिकृत्य पुनः सादिसपर्यवसानः । - सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १४२ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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