________________
षष्ठ कर्म ग्रन्थ : गा० २
आठ प्रकृतिक उदयस्थान में सब मूल प्रकृतियों का, सात प्रकृतिक उदयस्थान में मोहनीय कर्म के बिना सात मूल प्रकृतियों का और चार प्रकृतिक उदयस्थान में चार अघाती कर्मों का ग्रहण होता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि मोहनीय के उदय रहते आठों कर्मों का उदय होता है । मोहनीय के बिना शेष तीन घाती कर्मों का उदय रहते आठ या सात कर्मों का उदय होता है। आठ कर्मों का उदय सूक्ष्मसंपराय नामक दसवें गुणस्थान तक होता है और सात का उदय उपशान्तमोह या क्षीणमोह गुणस्थान में होता है। चार अघाती कर्मों का उदय रहते आठ, सात या चार का उदय होता है । इनमें से आठ का उदय सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक, सात का उदय उपशान्तमोह या क्षीणमोह गुणस्थान में और चार का उदय सयोगिकेवली तथा अयोगिकेवली गुणस्थान में होता है ।।
उक्त उदयस्थानों के स्वामी इस प्रकार समझना चाहिये कि मोहनीय कर्म का उदय दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक होता है अतः आठ प्रकृतिक उदयस्थान के स्वामी प्रारम्भ से दस गुणस्थान तक के जीव हैं । मोहनीय के सिवाय शेष तीन घाती कर्मों का उदय बारहवें गुणस्थान तक होता है अतः सात प्रकृतिक उदयस्थान के १. (क) मोहस्सुदए अट्ठ वि सत्त या लब्भन्ति सेसयाणुदए । सन्तोइणाणि अघाइयाणं अड सत्त चउरो य ।।
-पंचसंग्रह सप्ततिका, गा० ३ (ख) तत्र मोहनीयस्योदयेऽष्टानामप्युदयः, मोहनीयवर्जानां त्रयाणां घाति
कर्मणामुदये अष्टानां सप्तानां वा । तत्राष्टानां सूक्ष्मसंपरायगुणस्थानक यावत्, सप्तानामुपशान्तमोहे क्षीणमोहे वा, वेदनीयाऽऽयुःनामगोत्राणामुदयेऽष्टानां सप्तानां चतसणां वा उदयः । तत्राष्टानां सूक्ष्मसंपराय यावत्, सप्तानामुपशान्तमोहे क्षीण मोहे वा, चतसृणामेतासामेव वेदनीयादीनां सयोगिकेवलि नि अयोगिकेवलिनि च ।।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org