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________________ १० सप्ततिका प्रकरण काल व्यतीत होने पर संयम धारण करके एक अन्तर्मुहूर्त काल के भीतर क्षीणमोह होकर सयोगिकेवली हो जाता है, उसके एक प्रकृतिक बंधस्थान का उत्कृष्ट काल आठ वर्ष, सात माह और अन्तर्मुहूर्त कम एक पूर्व कोटि वर्ष प्रमाण प्राप्त होता है । बंधस्थानों के भेद, स्वामी और काल प्रदर्शक विवरण इस प्रकार है बंधस्थान स्वामी गुण. आठ प्रकृतिक सात प्रकृतिक छह प्रकृतिक एक प्रकृतिक मूल प्रकृति सब आयु के बिना मिश्र बिना अप्रमत्त गुणस्थान तक मोह व आयु सूक्ष्म के बिना वेदनीय Jain Education International सम्पराय जघन्य ११, १२, १३वां गुणस्थान आदि के नौ अन्तर्मुहूर्त एक अन्तर्मुहूर्त और गुणस्थान छह माह कम तथा पूर्व कोटि का त्रिभाग अधिक तेतीस सागर अन्तर्मुहूर्त एक समय एक समय काल उत्कृष्ट मुहूर्त For Private & Personal Use Only उदयस्थान, स्वामी और उनका काल बंध प्रकृतिस्थानों का कथन करने के पश्चात् अब उदय की अपेक्षा से प्रकृतिस्थानों का निरूपण करते हैं कि आठ प्रकृतिक, सात प्रकृतिक और चार प्रकृतिक, इस प्रकार मूल प्रकृतियों की अपेक्षा तीन उदयस्थान होते हैं । 1 देशोन पूर्व कोटि १ उदयं प्रति त्रीणि प्रकृतिस्थानानि, तद्यथा - अष्टौ सप्त चतस्रः । - सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १४२ www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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