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षष्ठ कर्म ग्रन्थ : गा०२
कर्मों की या मोहनीय के बिना सात कर्मों की तथा वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चार अघाती कर्मों के रहते हुए आठों की, मोहनीय के बिना सात की या चार अघाती कर्मों की सत्ता पाई जाती है।1 ___ इन सत्तास्थानों के स्वामी इस प्रकार हैं
चार अघाती कर्मों की सत्ता सयोगि और अयोगि केवलियों के होती है अतः चार प्रकृतिक सत्तास्थान के स्वामी सयोगिकेवली और अयोगिकेवली गुणस्थानवर्ती होते हैं। मोहनीय के बिना शेष सात कर्मों की सत्ता बारहवें क्षीणमोह गुणस्थान में पाई जाती है, अतः सात प्रकृतिक सत्तास्थान के स्वामी क्षीणमोह गुणस्थान वाले जीव हैं। आठ कर्मों की सत्ता पहले से लेकर ग्यारहवें उपशान्तमोह गुणस्थान तक पाई जाती है, अतः आठ प्रकृतिक सत्तास्थान के स्वामी आदि के ग्यारह गुणस्थान वाले जीव हैं। १. मोहनीये सत्यष्टानामपि सत्ता, ज्ञानावरणदर्शनावरणाऽन्तरायाणां सत्तायां
अष्टानां सप्तानां व सत्ता। वेदनीयाऽऽयु:नामगोत्राणां सत्तायामष्टानां
सप्तानां चतसणां वा सत्ता । -सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १४३ २. चतसृणां सत्ता वेदनीयादीनामेव सा, च सयोगिकेवलिगुणस्थानके अयोगि
के वलिगुणस्थानके च द्रष्टव्या । –सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १४३ ३. (क) तत्राष्टानामुपशान्तमोहगुणस्थानकं यावत् मोहनीये क्षीणे सप्तानां,
सा च क्षीणमोहगुणस्थानके । –सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १४३ (ख) संतो त्ति अट्ठसत्ता खीणे सत्तेव होंति सत्ताणि । जोगिम्मि अजोगिम्मि य चत्तारि हवंति सत्ताणि ।।
-गो० कर्मकांड, गा०४५७ उपशान्तकषाय गुणस्थान पर्यन्त आठों प्रकृतियों की सत्ता है । क्षीणकषाय गुणस्थान में मोहनीय के बिना सात कर्मों की ही सत्ता है और सयोगिकेवली व अयोगिकेवली इन दोनों में चार अघातिया कर्मो की सत्ता है।
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