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________________ २४ पारिभाषिक शब्द-कोष औदारिककार्मणबन्धन नामकर्म-जिस कर्म के उदय से औदारिक शरीर पुद्गलों का कार्मण पुद्गलों के साथ सम्बन्ध हो। औदारिकतैजसकामेणबंधन नामकर्म-जिस कर्म के उदय से औदारिकशरीर पुद्गलों का तेजस-कार्मण पुद्गलों के साथ सम्बन्ध हो। औदारिकतजसबंधन नामकर्म---जिस कर्म के उदय से औदारिकशरीर पुद्गलों का तैजस पुद्गलों के साथ सम्बन्ध हो। औदारिकमिध काय--औदारिकशरीर की उत्पत्ति प्रारम्भ होने के प्रथम समय से लगाकर अन्तर्मुहूर्त तक मध्यवर्ती काल में वर्तमान अपरिपूर्ण शरीर को कहते हैं। औदारिकमिश्र काययोग---औदारिक और कार्मण इन दोनों शरीरों की सहायता से होने वाले वीर्य-शक्ति के व्यापार को अथवा औदारिकमिश्न काय द्वारा होने वाले प्रयत्नों को औदारिकमिश्र काययोग कहा जाता है। औवारिक शरीर-जिस शरीर को तीर्थंकर आदि महापुरुष धारण करते हैं, जिससे मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है, जो औदारिक वर्गणाओं से निष्पन्न मांस, हड्डी आदि अवयवों से बना होता है, स्थूल है आदि, वह औदारिक शरीर कहलाता है। औवारिकशरीर नामकर्म-जिस कर्म के उदय से औदारिकशरीर प्राप्त हो। औदारिकशरीरबंधन नामकर्म-~-जिस कर्म के उदय से पूर्वग्रहीत औदारिक पुद्गलों के साथ वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले औदारिक पुद्गलों का आपस में मेल होता है। औदारिक वर्गणा-जिन पुद्गल वर्गणाओं से औदारिक शरीर बनता है । औदारिकसंघातन नामकर्म-जिस कर्म के उदय से औदारिक शरीर रूप परि णत पुद्गलों का परस्पर सान्निध्य हो । औपपातिक वैक्रिय शरीर---उपपात जन्म लेने वाले देव और नारकों को जो शरीर जन्म समय से ही प्राप्त होता है। औपशमिक भाव-मोहनीयकर्म के उपशम से होने वाला भाव । औपशमिक चारित्रचारित्र मोहनीय की पच्चीस प्रकृतियों के उपशम से व्यक्त होने वाला स्थिरात्मक आत्म-परिणाम । मोपशमिक सम्यक्रव-अनन्तानुबंधी कषाय चतुष्क और दर्शनमोहत्रिक-कुल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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