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________________ सप्ततिका प्रकरण प्रमत्तविरत में सत्तावन के बिना शेष प्रकृतियों का बंध होता है। ३८४ विशेषार्थ- पहले और दूसरे गुणस्थान में बंधयोग्य प्रकृतियों को पूर्व गाथा में बतलाया है । इस गाथा में मिश्र आदि चार गुणस्थानों की बंध प्रकृतियों का निर्देश करते हैं । जिनका विवरण नीचे लिखे अनुसार है : तीसरे मिश्र गुणस्थान में 'छायालसेस मीसो' बंधयोग्य १२० प्रकृतियों में से छियालीस प्रकृतियों को घटाने पर शेष रहीं १२० - ४६ - ७४ प्रकृतियों का बंध होता है। इसका कारण यह है कि दूसरे सासादन गुणस्थान तक अनन्तानुबंधी का उदय होता है लेकिन तीसरे मिश्र गुणस्थान में अनन्तानुबंधी का उदय नहीं होता है। अतः अनन्तानुबन्धी के उदय से जिन २५ प्रकृतियों का बंध होता है, उनका यहाँ बंध नहीं है । अर्थात् तीसरे मिश्र गुणस्थान में सासादन गुणस्थान की बंधयोग्य १०१ प्रकृतियों से २५ प्रकृतियाँ और घट जाती हैं । वे २५ प्रकृतियाँ ये हैं - स्त्यानद्धित्रिक, अनन्तानुबंधीचतुष्क, स्त्रीवेद, तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, तिर्यंचायु, प्रथम और अन्तिम को छोड़कर मध्य के चार संस्थान, प्रथम और अन्तिम को छोड़कर मध्य के चार संहनन, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीच गोत्र । इसके अतिरिक्त यह नियम है कि मिश्र गुणस्थान में किसी भी आयु का बंध नहीं होता है अतः यहाँ मनुष्यायु और देवायु, ये दो आयु और कम हो जाती हैं। मनुष्यायु और देवायु, इन दो आयुयों को घटाने का कारण यह है कि नरकायु का बंधविच्छेद पहले और तिर्यंचायु का बंधविच्छेद दूसरे गुणस्थान में हो जाता है । अतः आयु कर्म के चारों भेदों में से शेष रही मनुष्यायु और देवायु, इन दो प्रकृतियों को ही यहाँ कम किया जाता है। इस प्रकार सासा www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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