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षष्ठ कर्मग्रन्थ
३८३ . सासादन गुणस्थान में-'सासणो वि इगुवीस सेसाओं' उन्नीस प्रकृतियों के बिना शेष १०१ प्रकृतियों का बंध होता है। अर्थात् मिथ्यात्व गुण के निमित्त से जिन सोलह प्रकृतियों का बंध होता है, उनका सासादन गुणस्थान में मिथ्यात्व का अभाव होने से बंध नहीं होता है। मिथ्यात्व के निमित्त से बंधने वाली सोलह प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं:
१ मिथ्यात्व, २ नपुंसकवेद, ३ नरकगति, ४ नरकानुपूर्वी, ५ नरकायु, ६ एकेन्द्रिय जाति, ७ द्वीन्द्रिय जाति, ८ त्रीन्द्रिय जाति, ६ चतुरिन्द्रिय जाति, १० हुंडसंस्थान, ११ सेवात संहनन, १२ आतप, १३ स्थावर, १४ सूक्ष्म, १५ साधारण और १६ अपर्याप्त। मिथ्यात्व से बंधने वाली ११७ प्रकृतियों में से उक्त १६ प्रकृतियों को घटा देने पर सासादन गुणस्थान में १०१ प्रकृतियों का बंध होता है ।
इस प्रकार से पहले, दूसरे--मिथ्यात्व, सासादन-गुणस्थान में बंधयोग्य प्रकृतियों को बतलाने के बाद अब आगे की गाथा में तीसरे, चौथे आदि गुणस्थानों की बंधयोग्य : कृतियों की संख्या बतलाते हैं।
छायालसेस मीसो अविरयसम्मो तियालपरिसेसा।। तेवण्ण देसविरओ विरओ सगवण्णसेसाओ ॥५७॥
शब्दार्थ-छायालसेस-छियालीस के बिना, मीसो-मिश्र गुणस्थान में, अविरयसम्मो-अविरति सम्यग्दृष्टि में, तियालपरिसेस - तेतालीस के बिना, तेवण्ण-वेपन, देसविरओ-देशविरत, विरओ-प्रमत्तविरत, सगवण्णसेसाओ-सत्तावन के सिवाय शेष ।
__गाथार्थ-मिश्र गुणस्थान में छियालीस के बिना शेष प्रकृतियों का, अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में तेतालीस के
बिना शेष प्रकृतियों का, देशविरत में तिरेपन के बिना और Jain Education International For Private & Personal Use Only
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